यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 8 जून 2013

एक आशु गीत जो फेसबुक पर उपजा मेरे और आदरणीय सतीश सक्सेना जी के संवादों के बीच

(फेसबुक पर मेरा अपडेट -----सुबह -सुबह देखा मेरे घर के परिसर के प्रष्ठ  भाग में उगे जंगली दरख्तों के फूलों ने घर का मुख्य द्वार सजाया रात को आये तूफ़ान की मर्जी रही होगी -----को पढ़कर आदरणीय सतीश सक्सेना जी ने त्वरित इस  गीत का मुखड़ा बना डाला जिसको फिर मैंने आगे बढाया और बातों ही बातों में रच  गया ये गीत! )
सुबह दरवाजे पे देखा 
कि ढेरों फूल हैं बिखरे 
कहीं से रात को तूफ़ान 
झोली भर के लाया  था 
मेरी ही याद उन्हें आई कुछ  श्रद्धा रही होगी 
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही होगी 
सोई थी बेखबर ऐसे 
लगा ख़्वाबों में आया था 
ना ये आभास था मुझको 
कि कुंडा खटखटाया था 
उनींदी पलकें बोझिल सी सपने गढ़ती रही होगी 
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही होगी 
सुबह चिड़ियों के कलरव ने 
नींद मेरी जो खुलवाई 
मिले थे पुष्प स्वागत में  
खोलने द्वार जब आई 
सुभागी घर की वो देहरी महकती ही रही होगी
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही होगी 
मेरी बगिया के कुछ पुहुप 
नित उनको चिढाते थे 
निरे जंगली कहते और 
मन में मुस्कुराते थे 
दर्दे दिल की खलिश में की कोई मिन्नत रही होगी 
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही होगी 
लिए होंगे पवन से पंख 
उड़कर साथ आने को 
पकड़ कर हाथ तूफ़ान का 
वो आये रिझाने को 
छुपी  दिलों में कोई ख्वाहिश मचलती सी रही होगी 
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही होगी 
*********************************************                                          

15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह ! प्रकृति के सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन।
    सतीश जी की तो बात ही कुछ और है !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर मधुर गीत बन गया बातों बातों में ,क्या बात है ,बधाई आपको और सतीश जी को !
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रकृकि अपने सौन्दर्य की कृपा तो वैसे ही बरसाती रहती है, हम बस कृतज्ञ बने रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छा और मधुर गीत है
    - शून्य आकांक्षी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय

      हटाएं
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
    सादर...!
    शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  7. @
    सुबह -सुबह देखा मेरे घर के परिसर के प्रष्ठ भाग में उगे जंगली दरख्तों के फूलों ने घर का मुख्य द्वार सजाया रात को आये तूफ़ान की मर्जी रही होगी..

    आपके यह शब्द , प्रेरणादायी थे , बाक़ी आपकी प्रतिभा !
    बधाई आपको !

    जवाब देंहटाएं
  8. प्राकृति और सौंदर्य के मिश्रण से लाजवाब रचना की उत्पत्ति ...
    बहुत खूब संवाद ...

    जवाब देंहटाएं
  9. खिली खिली ...बहुत सुंदर रचना राजेश जी ...!!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं