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शनिवार, 13 नवंबर 2010

बचपन कितना खूबसूरत और मासूम होता है !उसकी यादें हमेशा दिल में रहती हैं पहले अपना बचपन हम अपने बड़ो से सुनते हैं तस्वीरों में देखते हैं ,महसूस करते है वही बचपन फिर लौट कर आता है ,अपनी गोद में मुस्कुराता है किलकारियां भरता है ! हम उसके नन्हे नन्हे हाथों को पकड़ कर चलना सिखातें हैं! यही सब भाव

मेरे मन में उभर रहे थे जब मैंने यह कविता लिखी ....

आ ललना तोहे चलना सिखाऊँ

कंटक चुन लूँ राहों से

तेरे पग पग में पुष्प बिछाऊँ

आ ललना तोहे चलना सिखाऊँ !
ये धरा बहुत ही कर्कश है तेरे कदम रुई के फोहे

फैलाके अपना आँचल उसपे चलाऊँ तोहे

छोड़ ग्रीवा के घेरे

आ तुझको अंगुली पकराऊँ

आ बेटा तुझे चलना सिखाऊँ
धूलि कण हैं मेरे आँचल में
तेरे कदम मखमली फोवे

बिछा के हिय अपना
अंक में भर लूंगी तोहे
तेरे नर्म नाजुक पग पग पर
मैं लाख लाख बलिहारी जाऊं
आ ललना तोहे चलना सिखाऊँ !

आज पुलकित तन मन मेरा
फिर मुस्काया बचपन मेरा
निज को खोकर तुज़को पाया
यह मोहक क्षण जीवन में आया
मैं इस तेरे प्रथम प्रयास पर कोटि कोटि मनिआं लुटाऊँ
आ ललना तोहे चलना सिखाऊँ !!
 

drawing competition on children's day organized by me.

रविवार, 7 नवंबर 2010

pashchataap ke aansu

कल हथेली पे मेरी आंसू गिरा गया कोई
जैसे बरसों की चुभन दिल से मिटा गया कोई ,
बिछाये थे जिसने गुरूर के पत्थर
अपनी ही ठोकर से हटा गया कोई !
जला रखी थी दिलों में जो लो नफरत की,
जाते हुए खुद ही बढ़ा गया कोई
ये कोई भ्रम था न ही कोई सपना
हकीकत से पर्दा हटा गया कोई !
लटक रही थी अधर में कब से जो,
दोस्ती की डोर फिर से थमा गया कोई !!

शनिवार, 6 नवंबर 2010

happy diwali

दिवाली दीपों का त्यौहार है ,दीपक का अपना ही एक महत्व है, अलग अलग अवसर पर अपना योगदान है मेरे नजरिये से दीपक के कितने रूप हैं ......


मैं एक सदय नन्हा सा दीपक हूँ


मेरी व्यथा मेरे मोद-प्रमोद की कहानी


तुमको सुनाता हूँ आज अपनी जुबानी


मैं एक नन्हा सा दीपक हूँ !


मैं निर्धन की कुटिया का दिया


,चाहत ममता के साए में पला


माँ की अंजलि और आँचल की छाँव में जला


मैं जरूरतों का दिया ,मैं निर्धनता का दिया !




मैं महलों व् ऊँची अट्टालिकाओं का दिया


इसके तिमिर को मैंने जो दिया है उजाला


उन्ही उजालो ने मेरी हस्ती को मिटा डाला


मैं उपेक्षित सा दिया ,मैं जर्जर सा दिया !




मैं आरती का दिया


चन्दन ,कर्पुर ,धूप से उज्जवल भाल


मन्त्र स्त्रोतों में ढला चहुँ ओर पुष्पमाल


मैं अर्चना का दिया ,मैं पुष्पांजलि का दिया !




मैं शमशान का दिया


मैं जिनके करकमलों में ढला.जिनके लिए हर पल जला


उनकी शव यात्रा में आया हूँ


इहि लोक तज उह लोक की राह दिखाने आया हूँ


मैं सिसकता दिया ,मैं श्रधांजलि का दिया !


मैं एक नन्हा सा दीपक हूँ !!


मैं नन्हा दीपक बन गया शहीदों की अमर ज्योति
या समझो ख़ाक का या समझ लो लाख का मोती !!