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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

आयो रे वसंत

धामक -धूमक कर आयो रे वसंत 
धन्य -धरित्री महकायो रे वसंत!
घूम रहे अलि-अलि झूम रही कलि -कलि  
पुहुप -पुहुप मुस्कायो रे वसंत !
 धामक -धूमक कर आयो रे वसंत!

प्रीत -पीत रंग सजी सरसों की क्यारी 
आल्हा की टंकार छेड़े खेतों का हाली
होलिया की गंध संग लायो रे वसंत 
धामक -धूमक कर आयो रे वसंत!

हल्दी वर्ण  परिधान सजे साजन और सजनिया 
कुहुक- कुहुक ललचावे रे कोयलिया 
सौरभ की बयार लेके आयो रे वसंत 
शुभ रंगों का प्यार लेके आयो रे वसंत 
धामक -धूमक कर आयो रे वसंत!!




सोमवार, 23 जनवरी 2012

देखो शिखर सम खड़ा हुआ


यह कविता उन माता पिता के नाम जिन्होंने सर्व प्रथम बालिका शिक्षण की शुरुआत की !

सकुचाया सा डरा डरा
अनचाहा सा मरा मरा
कम्पित काया, भीरु मन
जाने कब हो जाए हनन
सघन तरु की छाया में
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआI
कितने ही बवंडर आये
उसके वजूद तक पंहुच ना पाये
तरु का आलंबन कड़ा हुआ
जड़ों से पीकर उसका क्षीर 
धीरे धीरे बड़ा हुआ
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआI
   
                बीते कितने पतझड़ ,बसंत
हुआ कद उसका और बुलंद
खुशबु उसकी यूँ महकाए
पंवरी ,चन्दन भी शर्माएI
अरि आलोचक मूक बनाये
अपने दम पर अड़ा हुआ
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआ I
फिर काल चक्र सम्पूर्ण हुआ
सघन तरु तन जीर्ण हुआ
फट गई काया मिट गया तन
पर मन में ना कोई चुभनI
कहाँ भीरुता ,दुर्बल तन
अब बन गया वो तरु सघन
मेरी धरोहर मेरा वंश
उसके ही दम से चला हुआ
वो देखो शिखर सम खड़ा हुआI
मेरा नन्हा पौधा,
मुझसे भी कद में बड़ा हुआ
मुझसे भी कद में बड़ा हुआ II
*****

सोमवार, 16 जनवरी 2012

वो जीवन भी क्या!!

वो दिल भी क्या जिसे कभी प्यार ना मिला 
वो इन्सां भी क्या जिसे कभी यार ना मिला !
वो दिन भी क्या जिसमे ख़ुशी का जाम  ना मिला 
वो स्वप्न भी क्या जिसे कोई अंजाम ना मिला !
वो आवाज ही क्या जिसे  कोई सुन ना सका 
वो गीत ही क्या जिसे कोई गुन ना सका !
वो परवाज ही क्या जो कभी उड़ ना सके   
वो राह ही क्या जो कभी मुड़ ना सके !
वो युद्द ही क्या जिससे  कभी अमन ना मिला 
वो जीवन ही क्या जिसे मरते वक़्त कफ़न ना मिला !

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

जय भारत माता जयहिंद

मेरे देश वासियों दोनों आँखे खुली रखना 
एक आँख संसद पर दूजी सरहद पर रखना !
गिद्ध द्रष्टि देख रही हैअपने घर की हलचल
हर कदम आगे रखना देख जरा संभल कर 
अपना तिरंगा झुक न पाए इसे संभाले रखना 
एक आँख संसद पर दूजी सरहद पर रखना !

सर्द हिमखंड पिघल रहे हैं देखो धरा की आग से 
जंगल भी थर्रा रहे हैं अब सिंघों की जाग से 
एक जुट है सारा वतन नजर लक्ष्य पर रखना 

एक आँख संसद पर दूजी सरहद पर रखना !

बचा कर रखना अपना ईमान वोट के खरीदारों से 
कर लो दो -दो हाथ इन सत्ता के ठेकेदारों से 
कर दो विभूषित देश की कुर्सी नेक नियत दारों से 
तुम से ही है देश का गौरव अपना  हक जमा कर रखना
 एक आँख संसद पर दूजी सरहद पर रखना!

भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है 
आज खालो ये कसम !
जो भी राह में रोड़ा आये 
उसको करदो वहीँ भसम !
बन जाओ तुम वीर भगत सिंह 
चन्द्र शेखर सा जिगर रखना !

एक आँख संसद पर दूजी सरहद पर रखना!
मेरे देशवासियों दोनों आँखे खुली रखना !! 







  

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

परहित धरम परम सुखदाई

                 

                                                                  (१ )
सुनकर संतों की वाणी 
मैं प्रभु की अभिलाषी हो गई 
पीकर कटु दुखों का गरल 
मैं कितनी मृदुभाषी हो गई !!
(२ )
देख पराई पीर मैं अपनी 
नाव का चप्पू छोड़ गई 
नजर थी जिसकी तुझपर 
उस तूफाँ का रुख मोड़ गई!! 
(३)
मैं ,मेरा ,अहम् सब छोड़ा 
एक प्रभु से नाता जोड़ा 
अहम् सदा विवेक को हरता 
परहित धरम संतुष्टि करता !!
(४) 
परहित सम धरम नहीं कोई 
तुम भी समझ जाओगे 
पौंछ के देखो अश्रु किसी के 
प्रभु को निकट पाओगे !!
(५ )
एक दिन खोजूंगी उसको 
यह प्रभु की इच्छा पूर्ण हुई 
पाकर अपने  ही दिल में 
जीवन गाथा सम्पूर्ण हुई !!

रविवार, 1 जनवरी 2012

नव वर्ष में मासूम का संकल्प


वसुंधरा अपनी चिर परिचित गति से घूम रही है, 

निशानाथ परदेश भ्रमण की तैयारी में है, 
सखी निशा भी धीरे- धीरे सितारों को अपने आँचल में भर रही है! 
अन्तरिक्ष का केनवास स्पष्ट हो गया है, 
नन्हा चित्रकार मस्तिष्क जाग रहा है! 
क्यूँ न आज इस केनवास पर माँ का चित्र बनाऊं 
तू कितनी प्यारी है माँ ,ये दुनिया को दिखलाऊं ! 
नारियल के वृक्षों को जोड़कर लंबी सीढ़ी बनाई 
और अम्बर तक पहुचाई ! 
छुट मुट घनों के टुकड़ों को नन्हे हाथों से एक तरफ हटाया,
पर्वतों के गर्भ से खींच कर पेन्सिल निकाली 
और माँ का सलोना चेहरा बनाया!
फिर फल फूलों से कुछ इन्द्रधनुष से रंग लेकर , 
पास में ही रखे हुए चांदी के थाल में एकत्र  किये!
थोडा सा झुककर बंगाल की खाड़ी  के  
सागर में अंजली डुबोकर जल लिया और रंग तैयार किये! 
काश्मीर की  घाटी से चिनार के पत्तों से ब्रुश बनाया 
माँ के चेहरे को रंगों से सजाया !
कोयल से थोड़ा काला रंग लेकर माँ की आँखों में काजल लगाया !
रवि की पहली किरण ने माँ के माथे पर बिंदी लगा दी !
तितलियों ने अपने पंखों की हवा से गीला रंग सुखाया !
तस्वीर पूर्ण हुई !
निहारते हुए वह बोला "देखो कितनी सुन्दर थी मेरी माँ "
जैसे ही उसने यह कहा किसी ने उसकी सीढ़ी जोर से खींच ली, 
ओर वो धम्म से नीचे आ गिरा!                                                     
कानो में आवाज आई हरामखोर सपने ही देखता रहेगा 
काम पर नहीं जाना है क्या ?
आँखों में दर्द के बादल, पर उसके हर्दय में 
नए साल के नए शुभ प्रभात में 
एक संकल्प की ज्योति जल चुकी थी 
इस सपने पर सिर्फ मेरा हक है !
मैं यह कर दिखाऊंगा 
हकीकत की सीढ़ी से 
सफलता का ध्वज आसमां पर फहराऊंगा 
अपना भविष्य खुद बनाऊंगा !!!


कहते हैं स्वप्न सिर्फ पलकों  में सोते हैं 
पर होंसले बुलंद हो तो स्वप्न पूर्ण होते हैं !
नव वर्ष की सभी मित्रों को शुभकामनाएं