It was downpour that night,birds in their nest were squeaking whole night.that tree was just behind my room,I could not sleep because of my sympathetic emotions for tiny helpless birds....those thoughts came up in this way....
आंधी और तेज बारिश के बाद
बादलों ने कहर बरपाया
दामिनी ने उपद्रव मचाया
टहनी चटकी पात पात
नभचर रोये सारी रात
दरख्त का कन्धा टूट गया
अपना घरोंदा छूट गया
माँ कैसे अब भरण बसर होगा ?
.....पुनः जतन करना होगा !
तेरी कोमल कम्पित काया
पंख मेरे अब तेरी छाया
इनमे छुपाकर रख लूं तुझको
निज तन की ऊष्मा देदू तुझको
माँ तेरा तन कैसे गरम होगा ?
.....पुनः जतन करना होगा !
माँ मैं तेरी कोख का जाया
मैं समझूं हर तेरी माया
दाना दुनका नहीं मांगूंगा मैं
बिन चुगे अब रह लूँगा मैं
तुझे करना न कोई अब श्रम होगा
.....मेरे नन्हे पुनः जतन करना होगा !
देखो माँ सूरज उग आया
आलोक से तेरा भाल गर्माया
मैं भी बाहर जाऊँगा
तेरा हाथ बठाऊंगा
तेरा गम सब हरना होगा
माँ मुझको अब उड़ना होगा
......पुनः जतन करना होगा !!!!
you are welcome on this blog.you will read i kavitaayen written by me,or my creation.my thoughts about the bitterness of day to day social crimes,bad treditions .
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शनिवार, 28 अगस्त 2010
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
kuch dard
कुछ दर्द उजागर होने दो
कुछ दर्द जिगर को सहने दो
कुछ लफ्ज लबों से कह डालो
कुछ लफ्ज नयन से कहने दो !
कुछ राज जमाना जान भी ले
कुछ अंतर्मन मे रहने दो
कुछ अश्क पलक पे रहने दो
कुछ भवसागर में बहने दो !
कुछ रोज यहाँ मर मर के जिए
कुछ पल उल्फत में जीने दो
कुछ जफा के प्याले बिखरा दो
कुछ जाम वफ़ा के पीने दो !!
कुछ दर्द जिगर को सहने दो
कुछ लफ्ज लबों से कह डालो
कुछ लफ्ज नयन से कहने दो !
कुछ राज जमाना जान भी ले
कुछ अंतर्मन मे रहने दो
कुछ अश्क पलक पे रहने दो
कुछ भवसागर में बहने दो !
कुछ रोज यहाँ मर मर के जिए
कुछ पल उल्फत में जीने दो
कुछ जफा के प्याले बिखरा दो
कुछ जाम वफ़ा के पीने दो !!
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
baadh peedito ke naam
बूँद बूँद बरसाता बादल .जीवन की प्यास बुझाता बादल !
जहाँ बादलों को देखकर बच्चे बनांते थे रंग बिरंगी आकृतियाँ
वहां आज वो बादलों में ढूँढ़ते हैं सिर्फ गोल गोल रोटियां
उनका बसेरा था जहाँ वो सब बहा ले गया नीर
जीवन की प्यास बुझाने वाला विष बन गया नीर !
वो डरा हुआ बचपन, सहमा हुआ बचपन क्या कभी गा पायेगा
हरा समुंदर उसके अंदर बोल मेरी मछली कितना पानी
उन् आँखों ने जो देखा है .शायद अब वो नींद में भी कहेगें
इतना पानी, इतना पानी, इतना पानी !!!
जहाँ बादलों को देखकर बच्चे बनांते थे रंग बिरंगी आकृतियाँ
वहां आज वो बादलों में ढूँढ़ते हैं सिर्फ गोल गोल रोटियां
उनका बसेरा था जहाँ वो सब बहा ले गया नीर
जीवन की प्यास बुझाने वाला विष बन गया नीर !
वो डरा हुआ बचपन, सहमा हुआ बचपन क्या कभी गा पायेगा
हरा समुंदर उसके अंदर बोल मेरी मछली कितना पानी
उन् आँखों ने जो देखा है .शायद अब वो नींद में भी कहेगें
इतना पानी, इतना पानी, इतना पानी !!!
सोमवार, 16 अगस्त 2010
ye pahachaan adhoori hai
तुम यहीं होते हो आसपास मगर न जाने क्यों
लगता है ये शाम अधूरी है !
तुम हँसते हो दिल खोलकर मगर न जाने क्यों
लगता है ये मुस्कान अधूरी है !
तुम कहते हो कुछ ओर ,आँखे बंया करती हैं कुछ ओर
जाने क्यों लगता है कोई बात अधूरी है !
रोज मिलते हो ,हाल बयां करते हो
मगर लगता है ये पहचान अधूरी है !
हम भी होते हैं तुम भी होते हो .मगर न जाने क्यों
लगता है जैसे जनम की दूरी है !!!
लगता है ये शाम अधूरी है !
तुम हँसते हो दिल खोलकर मगर न जाने क्यों
लगता है ये मुस्कान अधूरी है !
तुम कहते हो कुछ ओर ,आँखे बंया करती हैं कुछ ओर
जाने क्यों लगता है कोई बात अधूरी है !
रोज मिलते हो ,हाल बयां करते हो
मगर लगता है ये पहचान अधूरी है !
हम भी होते हैं तुम भी होते हो .मगर न जाने क्यों
लगता है जैसे जनम की दूरी है !!!
शनिवार, 14 अगस्त 2010
ek shaheed ke naam.today is independence day,we are celebrating,but we should not forgate our soldier's sacrifice
पहाड़ जैसी जिंदगी वो चार दिनों में जी गया
हम दो घूँट पी न सके वो सारा समुंदर पी गया !
वो उन राहों पर दौड़ गया जिन राहों पर हम चल न सके ,
जाते हुए सब को बोल गया की हम आँख में आंसू भर न सके
वो व्यथित ,धहकते सीनों में कुर्बानी के अंकुर बो गया
हम देखते ही रह गए वो तिरंगा ओढ़ कर सो गया !
शोलों से भरा जज्बा पाषाण सा जिगर रखता था
हम बोने बन कर रह गए वो जाते हुए आसमा छू गया !!
हम दो घूँट पी न सके वो सारा समुंदर पी गया !
वो उन राहों पर दौड़ गया जिन राहों पर हम चल न सके ,
जाते हुए सब को बोल गया की हम आँख में आंसू भर न सके
वो व्यथित ,धहकते सीनों में कुर्बानी के अंकुर बो गया
हम देखते ही रह गए वो तिरंगा ओढ़ कर सो गया !
शोलों से भरा जज्बा पाषाण सा जिगर रखता था
हम बोने बन कर रह गए वो जाते हुए आसमा छू गया !!
बुधवार, 11 अगस्त 2010
Meet
मुझसे ही छुप कर मेरे मेले में आता रहा मीत
मेरे अजीज खिलोनो से अपनी दुनिया सजाता रहा मीत !
दिन में मुझे सपने दिखाता रहा मीत
रातों को मेरे सपने चुराता रहा मीत !
मेरे अजीज खिलोनो से अपनी दुनिया सजाता रहा मीत !
दिन में मुझे सपने दिखाता रहा मीत
रातों को मेरे सपने चुराता रहा मीत !
बुधवार, 4 अगस्त 2010
Meet ,Dard ka paigam
कौन जाने कब मीत बन के दगा दे कोई
फूलों की तह में कांटो की पर्त बिछा दे कोई !
बहारों का सन्देश लेकर आती हुई उन हवाओं को टटोलो
कोन जाने दर्द का पैगाम छुपा दे कोई !
संभल के खोलना उन दरों दरवाजों को
कौन जाने अश्कों को तेरी चोखट पे सजा दे कोई !!.
फूलों की तह में कांटो की पर्त बिछा दे कोई !
बहारों का सन्देश लेकर आती हुई उन हवाओं को टटोलो
कोन जाने दर्द का पैगाम छुपा दे कोई !
संभल के खोलना उन दरों दरवाजों को
कौन जाने अश्कों को तेरी चोखट पे सजा दे कोई !!.
सोमवार, 2 अगस्त 2010
रविवार, 1 अगस्त 2010
AAge badna hai jindgi
वक़्त की गर्द में लिपटे हुए वो पल अब तो भुला देंगे हम
देखा जो मुडके पीछे तो खुद को सजा देंगे हम
मुश्किल सही नामुमकिन कुछ भी नहीं ,
आगे बढ़ना है जिन्दगी चलो ये ही सही
नए बनायेंगे पथ चिन्ह पीछे के मिटा देंगे हम !
देखा जो मुडके पीछे तो खुद को सजा देंगे हम !!
देखा जो मुडके पीछे तो खुद को सजा देंगे हम
मुश्किल सही नामुमकिन कुछ भी नहीं ,
आगे बढ़ना है जिन्दगी चलो ये ही सही
नए बनायेंगे पथ चिन्ह पीछे के मिटा देंगे हम !
देखा जो मुडके पीछे तो खुद को सजा देंगे हम !!
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