(मेरा छोटा भाई )
( इक ऐसा सच!! लगता है जैसे कोई ये सब लिखने को मजबूर कर रहा है कुछ पुराने जख्म जो सबके सामने खोल रही हूँ )
जैसे ही दरवाजे पर दस्तक हुई वो सामने खड़ा था
सफ़ेद कुरता पायजामा पहने चेहरा पहचान गई हाँ तुम ही तो हो
दो शख्स जो तुम्हें घर तक लाये वो भी जाने पहचाने लगे
पल भर में मानो ख़ुशी का सैलाब आँखों से उमड़ पड़ा
दौड़ कर सीने से लगा लिया तुम्हें
कहाँ चले गए थे मेरे भाई तुम
क्या हाल हो गया है तुम्हारा कहाँ थे
फिर तुमने कहा दीदी उन्होंने मुझे बहुत सताया
बहुत दर्द होता है आज भी तुमने अपनी छाती
दिखाई उसमे बने दो सुराख ज्यों के त्यों
देख पल भर में वो न्रशंसता का वो खेल
आँखों के सामने घूम गया
फिर तुमने कहा दीदी मुझे फिर तीव्र ज्वर हो गया था
और मैं उस पार चला गया था
तुम्हारी आवाज मानो कहीं दूर से आ रही थी
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे
दिसंबर माह की सर्दी में मैं
मैं बर्फ की सिल्ली से लिपटी हुई हूँ
ओर मैं बहुत काँप रही हूँ
अचानक तुम दूर हो जाते हो
और उस पार से तुम्हारी आवाज
फिर आती है दीदी मैं फिर आऊंगा मिलने
मेरी अचानक आँखे खुलती हैं
धीरे धीरे नजर स्पष्ट होती है
सर के ऊपर छत का पंखा हिल रहा है
ध्यान से देखती हूँ सब कुछ स्थिर है
गहन सन्नाटा नीरवता है चारो और
रात के तीन बजे हैं ,फिर आँखे बंद नहीं होती
दौड़ कर तुम्हारी रखी हुई वस्तुओं का बोक्स
खोलती हूँ तुम्हारी डायरी हाथ लगती है
जिसमे तुम सबके एड्रस लिखा करते थे
बार बार ढूँढती हूँ
तो सिर्फ तुम्हारा ही एड्रस नहीं मिलता
हथेलियों से मुख ढांप लेती हूँ
दिल दिलासा देता है चल उस पार
कोई है जो फिर आवाज देगा !!
और मैं भारी क़दमों से किचिन की ओर
चल देती हूँ पानी पीने के लिए
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