कुछ लम्हों के लिए तेरा आना ,
मेरे पास ठिठक कर रुक जाना
और मुस्कुरा कर चले जाना
भला लगा था !
तुम्हारा पुनः आना
और मेरे पास चुपचाप बैठ जाना
वो सानिध्य सुखकर लगा था !
तुम्हारे चेहरे के बदलते रंग
मैंने महसूस किये ,
तुम्हारे माथे की शिकन
को खुलते देखा ,
अधरों पर हलकी सी मुस्कान को
आते जाते देखा !
न जाने कब तुम्हारे नयनो
के निश्छल प्यार की कलम ने
मेरे हर्दय के कागज़ पर
प्रेम कहानी लिखनी शुरू कर दी !
अब मेरे इन्तजार का सिलसिला बढ़ने लगा
और तुम्हारा मेरे पास ठहरने का वक़्त भी !
पर तुम्हारा मूक ,अपलक मुझे देखते रहना
मुझे मन मंथन के लिए अग्रसित करता था
कुछ तो था मुझमे जो तुम रोज मेरे पास
खिचे चले आते थे ,फिर कुछ कहते क्यूँ नहीं !
प्रत्यक्ष को प्रमाण भी चाहिए ,
मैं तो पहले ही तुम्हारे प्रतिबिम्ब को
अपने ह्रदय में समां चुकी थी !
धीरे धीरे चंद्रमा को तुम अपने हाथों से
ढांपने लगे
शायद तुम डाह करने लगे थे
उसकी किरने जो मुझे चूमती थी
पवन ने शरारत से मेरी जुल्फों
को छुआ ,तो तुम्हारे चेहरे की रंगत ही बदल गई !
तुम मेरे पास बैठ कर मखमली घास में
ऐसे आड़ी तिरछी रेखाएं खींचते
मानो आने वाले तूफ़ान को जकड़ने
के लिए चक्रव्यूह रच रहे हों !
पर आज अचानक शांत झील में ये हलचल क्यूँ
लगता है मुझसे भी छुपकर
तुमने मेरे बदन को हौले से स्पर्श किया
और तुम्हारे होठों से अनायास ही
मुखरित हुए ये चिरप्रतीक्षित शब्द
तुम मेरी हो !
एहसास हुआ आज आसमान झुक गया
मेरा सर तुम्हारे काँधे पर था,
पर मेरा दिमाग आने वाले भूकंप को साक्षात
देख रहा था !
तुम्हारे मौन का अर्थ अब मैं समझ रही थी,
क़ि क्या कभी अम्बर और धरा का मिलन हो सकता है
क्या ये पग पग में बिछे ज्वालामुखी
उच्च और निम्न ,श्याम और श्वेत
लोह और स्वर्ण के मिलन का
इन्द्रधनुष बनने देंगे कभी ??
और न जाने कब मेरी पलकों
का सावन तुम्हे भिगो गया !
*****