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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

हास्य कविता जय हनुमंत अमंगलहारी




  
जय हनुमंत अमंगलहारी
प्रभु तेरी सेना बड़ी दुखकारीI
नित मेरी बगिया में उत्पात मचावें
फिर मुझको ही अंगूठा दिखावें I
गाजर ,मूली ,भिन्डी सब खाई
खीरे और कद्दू कि तो कर दी सफाई I
नहीं खाते यह सोच अदरख भी लगाईं
इन मुओं ने कहावत भी झुठलाई I
ना मैं सिया ना ये सोने कि लंका
फिर क्यूँ निशदिन बजावें डंकाI
,फल भी आधे फेंके आधे खाए
ये भिलनी के कपूत कहाँ से आयेI
कष्ट निवारण हेतु पटाखे भी छुडाये
किन्तु अगले ही दिन ये फिर लौट आयेI
क्या करूँ प्रभु ,ये तो बहुत ही छिछोरे
दिखाऊं गुलेल तो खीसें निपौरेI
हे प्रभु अगर इस कष्ट से मुक्ति पाऊं
हर मंगलवार तुझपे प्रसाद चढाऊं I
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रविवार, 23 अक्तूबर 2011

आओ मिलकर दीप जलाएं



आओ  मिलकर  दीप  जलाएं  

ऐसा दीप . .....
जो  भाई  चारे  की  मिटटी  से  बना  हो
निश्छलता     का  तेल  डला  हो
सच्चाई  की  बत्ती  डलती हो
शुभकामनाओं  की  लौ  जलती    हो II
...........आओ  मिलकर  दीप  जलाएं  दिवाली दीपों का त्यौहार है ,दीपक का अपना ही एक महत्व है, अलग अलग अवसर पर अपना योगदान है मेरे नजरिये से दीपक के कितने रूप हैं ......


मैं एक सदय नन्हा सा दीपक हूँ 


मेरी व्यथा मेरे मोद-प्रमोद की कहानी 


तुमको सुनाता हूँ आज अपनी जुबानी 


मैं एक नन्हा सा दीपक हूँ !


मैं निर्धन की कुटिया का दिया 


,चाहत ममता के साए में पला 


माँ की अंजलि और आँचल की छाँव में जला 


मैं जरूरतों का दिया ,मैं निर्धनता का दिया !




मैं महलों व् ऊँची अट्टालिकाओं का दिया


इसके तिमिर को मैंने जो दिया है उजाला 


उन्ही उजालो ने मेरी हस्ती को मिटा डाला 


मैं उपेक्षित सा दिया ,मैं जर्जर सा दिया !




मैं आरती का दिया 


चन्दन ,कर्पुर ,धूप से उज्जवल भाल 


मन्त्र स्त्रोतों में ढला चहुँ ओर पुष्पमाल


मैं अर्चना का दिया ,मैं पुष्पांजलि का दिया !




मैं शमशान का दिया 


मैं जिनके करकमलों में ढला.जिनके लिए हर पल जला


उनकी शव यात्रा में आया हूँ 


इहि लोक तज उह लोक की राह दिखाने आया हूँ 


मैं सिसकता दिया ,मैं श्रधांजलि का दिया !


मैं एक नन्हा सा दीपक हूँ !!


मैं नन्हा दीपक बन गया शहीदों की अमर ज्योति
या समझो ख़ाक का या समझ लो लाख का मोती !!
You mig

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

एक ग़ज़ल

तोड़ कर फेंक ना मुझे राहों में इस तरह ,
तेरे ही दामन में उलझ जाउंगी कभी !
छू ले अपने अधरों से मेरी ग़ज़ल का प्याला 
वरना टूट के बिखर जाउंगी तेरे क़दमों में कभी !
अपने दिल से मुझे इस तरह तू दूर ना कर 
छुप कर बैठ जाउंगी तेरे  हाथों की लकीरों में कभी !
खुदा के वास्ते यूँ  गुरूर  करना ठीक नहीं 
तेरी रुसवाई की आंधी ना बन जाऊं कभी !
तेरे हाथो में लिए अखबार की कसम 
इसी की सुर्खियाँ ना बन जाऊं कभी !

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

नहीं चाहिए ये घर तेरा


नहीं चाहिए ये घर तेरा
ना पंखों का सम्मान किया
ना प्रभु के सर्जन का मान किया
एक तुच्छ पिंजर में डाल दिया
घर की खूँटी पर टांग दिया I
तुम निगल गए मेरा आकाश,
छीन लिया मेरा प्रकाश I
कहाँ गई सब तेरी निष्ठा,
क्या बढ़ गई तेरी प्रतिष्ठा ?
व्यर्थ उन्होंने शीश कटाए
तुम आजादी समझ ना पाएI
जब मैं देखूं गगन की ओर
अपने सहचरों की ओर
दिल खून के घूँट है पीता
मेरी पाँखों में दर्द भी होता I
तू जब घर से बाहर जाता है
मेरे मन में ये आता है
अगर मिले ये जनम दुबारा
इसी पिंजरे में  घर हो तुम्हाराI
नहीं चाहिए ये घर तेरा
देदे मुझको जीवन मेरा
देदे मुझको जीवन मेरा I
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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

जीवन में संगीत


जीवन में संगीत
हिय का स्पंदन संगीतमय
कंठ का आभ्यन्तर संगीतमय
खग, विहग कलरव संगीतमय
वृक्षों के पल्लव संगीतमय
चौपायो  की पदचाप संगीतमय
बूंदों की हर  थाप संगीतमय
निर्झर का इठलाना संगीतमय
नदियों का कलकलाना संगीतमय
पर्वतों की गूँज संगीतमय
बारिश की हर बूँद संगीतमय
रहट की परिक्रमा संगीतमय
पनघट की गरिमा संगीतमय
गेहूं  की हर बाली संगीतमय
हल चलाता हाली संगीतमय
कलियों की चटकान संगीतमय
रसिक भ्रमरों का गान संगीतमय
घट- घट बहता नीर निरंतर
जीवन में संगीत निरंतरII


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साईं तेरे नाम की महिमा अपरम्पार
बुरे करम जो ना करे बेड़ा उसका पारII
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