कल हथेली पे मेरी आंसू गिरा गया कोई 
जैसे बरसों की चुभन दिल से मिटा गया कोई ,
बिछाये थे जिसने गुरूर के पत्थर 
अपनी ही ठोकर से हटा गया कोई !
जला रखी थी दिलों में जो लो नफरत की, 
जाते हुए खुद ही बढ़ा गया कोई 
ये कोई भ्रम था न ही कोई सपना 
हकीकत से पर्दा हटा गया कोई !
लटक रही थी अधर में कब से जो, 
दोस्ती की डोर फिर से थमा गया कोई !!
लटक रही थी अधर में कब से जो,
जवाब देंहटाएंदोस्ती की डोर फिर से थमा गया कोई !!
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आसा के सुमन खिलाती हुई,
बहुत ही शानदार गजल है!
ये कोई भ्रम था न ही कोई सपना
जवाब देंहटाएंहकीकत से पर्दा हटा गया कोई !
बड़ी हकीकत परक पंक्तियाँ ..... बेहतरीन