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शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

सिर्फ़ एक चटक रंग (कहानी)


मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी  ये सब और वो दो बांहों के घेरे में समा  गई और पटाक्षेप हो गया । ,सुरभि लगातार आँखों से आंसू पोंछ रही थी की पीछे से आवाज आई कितनी बार कहा सुभी ये ऊट  पटांग  सीरियल मत देखो फिर रोती  रहती हो और भी तो कुछ कर सकती हो मन बहलाने के लिए ,देखो आज मेरी मीटिंग है देर से लौटूंगा अपना और रोहित का ख्याल रखना ,सुरभि ने कहा "ठीक है"  और सब कुछ शांत हो गया |इतने में किसी ने हिलाया तो जैसे उसकी तन्द्रा टूटी तो सुना, क्या ठीक है? माँ कहाँ खो गई ?कब से कह रहा हूँ ये सास बहु के सीरियल देख कर अपना दिमाग  ख़राब मत किया करो  आप क्या सोच रही थी  ,देखो आज आफिस  के बाद मेरे एक फ्रेंड की वेडिंग एनिव्र्सरी है श्रुति भी स्कूल के बाद मुझे ऑफिस में मिल जायेगी पार्टी में देर हो सकती है गौरव स्कूल से आये तो बता देना ,सुरभि  "ठीक है" कह कर  कुछ देर तक सोचती रही  और जाने कब आँख लग गई तीन बजे गौरव स्कूल से आया बैग एक साइड पटक कर बोला दादी मैं पार्क में खेलने जा रहा हूँ ज्यादा टीवी मत देखना आप फिर रोती  हो  ,सुरभि बोली "ठीक है "एक बार फिर वो अतीत की धुंध  में गुम  हो गई। 
कुछ देर बाद आँखें खोली तो सामने लक्ष्मी (काम वालीको खड़ा पाया वो कह रही थी  माजी आप ठीक तो हैं ,दरवाजा भी खुल पड़ा है बाबा कहाँ है सुरभि ने कहा ठीक हूँ बाबा खेलने गया है ।लक्ष्मी किचेन में चली गई तो उसने पास में बैठी हुई लक्ष्मी की बेटी जो महज या सात साल की होगी को कोई भी सी डी लगाने को बोला ,सी डी प्ले होने लगी उसे देखकर  एक बार फिर सुरभि अतीत की सीढियां उतर  रही है रोहित  ढाई तीन साल का है सामने लान में भागते हुए गिर पड़ा सुरभि उसकी चीख सुनकर दौड़ पड़ी साडी पैर के नीचे फंसी और वो धडाम से गिरी उसे क्या पता था वो दौड़ उसके जीवन की अंतिम दौड़ थी ,पास बैठी हुई लक्ष्मी की बेटी ने सुरभि को आँखें पोंछते देखा तो तुरंत  खड़ी हो गई  बोली "दादी मत देखो", आप दुखी होती हो शायद आपका मन नहीं लग रहा चलो मैं आपको बाहर घुमा के लाती हूँ और वो नन्ही बच्ची व्हील चेयर को धकेलती हुई बाहर लान में ले गई मौसम बहुत सुहाना था वो अचानक ख़ुशी से उछलती हुई बोली दादी देखो इंद्र धनुष निकला है आसमान में ,सुरभि ने गर्दन उठाकर देखा तो एक मुस्कान उसके अधरों पर लौट आई सोचने लगी देखो आज उसका एक रंग जो वो  कब से मांगती थी जमीन पर उतर कर उसकी व्हील चेयर पकडे खड़ा है  
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13 टिप्‍पणियां:

  1. दादी दीदा में नमी, जमी गमी की बूँद |
    देख कहानी मार्मिक, लेती आँखें मूँद |
    लेती आँखें मूँद, व्यस्त दुनिया यह सारी |
    कभी रही थी धूम, आज दिखती लाचारी |
    लेकिन जलती ज्योति, ग़मों की हुई मुनादी |
    लेता चेयर थाम, प्यार से बोले दादी ||

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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  3. मन को छू गयी कहानी....रुला भी गयी...

    सादर
    अनु

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  4. मर्मस्पर्शी कहानी ..... होता है ऐसा भी

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  5. लघु कलेवर की परिवेश प्रधान सजीव कथा .पूर्व दीप्ति राग रंग फ्लेश बेक लिए यादों के सैलाब का .

    ram ram bhai
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    रविवार, 10 फरवरी 2013
    ये जीवित पुतले नुमा आदमी कौन है ?प्रधानमंत्री है?

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .हमारी महत्वपूर्ण धरोहर बन जातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .उत्प्रेरक का काम करतीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .नव सृजन की आंच बनतीं हैं .

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  6. दिल को छू गयी यह लघु कथा..आभार !

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