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सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

बुजुर्ग दिवस के उपलक्ष में


सेदोका एक जापानी विधा ३८ वर्ण ५७७५७७
()
बूढ़ा बदन
कंपकपाते हाथ
किसी का नहीं साथ
लाठी सहारा
पाँव से मजबूर
बेटा बहुत दूर
()
धुंधली आँखें
झुर्री  भरा चेहरा
भाव बड़ा गहरा
भूख है लगी
चूल्हे पर नजर
बच्चे हैं बेखबर
(३)
बीमार बूढा
रात भर खांसता
परिवार कोसता
गीला बिछौना
सर्दियों का महीना
मुश्किल हुआ जीना
(४)
एकांत कक्ष
मन कहाँ लगता
प्यार को तरसता
कुछ बोला तो
ऐश में  बना रोड़ा
वृधाश्रम में  छोड़ा
(5)
जिन्दा रहते
उपेक्षित रहते
हर दुःख सहते
म्रत्यु के बाद
लोग ढोंग भरते
कनागत करते 
(6)
सौभाग्य वही
वृद्धों का जो साथ है
आशीष का हाथ है
उनसे पूछो
ना माँ है ना बाप है
जीना अभिशाप है
************

19 टिप्‍पणियां:

  1. सत्या कहती संवेदनशील रचनाएँ ...
    सभी बहुत अच्छी लगीं ....!!

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  2. सौभाग्य वही
    वृद्धों का जो साथ है
    आशीष का हाथ है
    उनसे पूछो
    ना माँ है ना बाप है
    जीना अभिशाप

    बहुत सुंदर भाव लिए यह प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा' पर आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. बुढ़ापे का दर्द जाने कौन ..
    जिसने सहा ...बाकि मौन !

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  4. क्या कहूँ राजेश जी...
    कोई भी विधा हो...भावनाओं की अभिव्यक्ति में कहीं कोई कसर नहीं...
    बेहतरीन..

    सादर
    अनु

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  5. बहुत संवेदनशील रचनाएँ .... बुज़ुर्गों की पीड़ा अंकित कर दी

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  6. बहुत सुन्दर राजेश जी ...हर सेदोका अंत:स को झंझोड़ता हुआ .....

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  7. very touching creation.... We must extend our love, care and respect to elderly people.

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  8. सेदोका की सभी लड़ियाँ बेहद सशक्त .राजेश कुमारी जी ,कृपया इससे पिछली पोस्ट में -वो वाकये जो आल्हादित
    मलय की सुगंध देते थे ,में आह्लादित कर लें ,आल्हादित को .शुक्रिया .

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  9. hm sb ka ek frz bnta hai ki buzurgo ko samman de, esliye nhi ki hm bhi ek din buzurg hode,apitu esliye ye hamari dhamnio me sancharit hote rahte hai, nischit roop se prashanshniy prastuti

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  10. विरेन्द्र कुमार शर्मा जी बहुत बहुत धन्यवाद त्रुटी सुधार दी है

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  11. अन्दर तक उद्वेलित करते...सेदोका...

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  12. सेदोका विधि से लिखी यथार्थ से भरी मन को छूती रचना,उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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  13. सेदोका के बारे में जानकारी और रचनायें पढ़वाने का आभार!!

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  14. बुढापे की सूखी रेत को विषय बना कर लिखना भी कितना कठिन हो जाता है .
    इस लघु विधा के मान का हिन्दीकरण अच्छा किया !

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  15. सौभाग्य वही
    वृद्धों का जो साथ है
    आशीष का हाथ है
    उनसे पूछो
    ना माँ है ना बाप है
    जीना अभिशाप है
    मन को छूते शब्‍द ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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