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मंगलवार, 15 मई 2012

चौपाई (पर्यावण )


    हरित तरु अरु प्रकृति न्यारी |व्याधि निवारक आपद हारी ||       
  गर्भस्थ शिशु सम जीव विस्तारी |करे सुपोषण ज्यों महतारी ||
वन,उपवन,गिरी वय संचारी |होई है अधम जो चलावै आरी ||
कुपित प्रकृति रूप जेहि धारे |ताहि कहौ फिरि कौन उबारे ||
स्नेह जल सींचि-सींचि तरु बोई |प्राण सफल आनंद फल होई ||
जबहिं कठिन परिश्रम कीजै |तबहिं सम- सरस फल लीजै ||
सुपर्यावरण में ज्योति तुम्हारी |इदं उक्तिम ग्रहेयु नर नारी ||



16 टिप्‍पणियां:

  1. जबहिं कठिन परिश्रम कीजै |तबहिं सम- सरस फल लीजै ||

    Bahut Sunder....

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  2. सच है..प्रेम से सींचें तब ना मीठे फल पायेंगे.....
    बहुत सुंदर राजेश जी.

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  3. वन,उपवन,गिरी वय संचारी |होई है अधम जो चलावै आरी ...

    सच कहा है .. पर आज कोई इस बात कों नहीं सुनना चाहता ... जब पानी सर से गुज़र जायगा तब जागेंगे ...

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  4. कुपित प्रकृति रूप जेहि धारे |ताहि कहौ फिरि कौन उबारे ||
    सुन्दर है पर्यावरणी चौपाई .

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  5. बहुत सुन्दर बनी हैं चौपाई....

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  6. पर्यावरण के प्रति जागरूकता ज़रूरी है...सुन्दर चौपाइयां...

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  7. सुविषय सुगढ़ रची चौपाई।
    सादर।

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  8. चौपाई अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  9. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार

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  10. ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
    ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार!

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  11. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार

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