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रविवार, 31 जुलाई 2011

जब यह रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी

मौत का तांडव यहाँ हर रोज होता है !
कब ,कौन ,कहाँ ,कैसे अपनों को खोता है !
क्यूँ लाचार है इंसानियत ,क्यूँ हावी है हैवानियत !
आओ मिलकर ये सोचेंगे 
जिंदगी पर किसका हक है ?
ये खुदा से पूछेंगे !

ना जाने कौन सा आसमां होगा कौन सी जमीं होगी 
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !
कौन सा लम्हा होगा कौन सी घडी होगी
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !
जिस्म क्या है एक शाख का पत्ता ही तो है 
आज दरख़्त की शान है कल टूटा हुआ तिनका ही तो है ,
ना जाने कौन सा पतझड़ होगा कौन सी ऋतू होगी, 
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !
जिस्म क्या है एक पानी का बुलबुला ही तो है ,
आज मौजों में डोल रहा कल जलमग्न होना ही तो है!
ना जाने कौन सा भंवर होगा कौन सी लहर होगी, 
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी ! 
जिस्म क्या है एक जलता हुआ दीपक ही तो है ,
एक पहर गर्व से चमक रहा दूजे पल तिमिर में छुपना ही तो है! 
ना जाने कौन सा झोंका होगा कौन सी आंधी होगी, 
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी ! 
जिस्म क्या है कुछ दिनों का महमां ही तो है 
आज स्वजनों के बीच जिया 
कल सबसे बिछुड़ जाना ही तो है !
ना जाने कौन सा कन्धा होगा कौन सी गोदी होगी ,
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !
ना जाने कौन सा आसमां होगा कौन सी जमीं होगी 
जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !  

20 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह!
    आपने तो बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है!
    बहुत सुन्दर पोस्ट!
    --

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  2. न जाने कौन सा पतझड़ होगा ,कौन सी ऋतु होगी ....जाना बस एक रिहर्सल एक "दे -जावू ".कृपया इसे भी बांचें .
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  3. जिंदगी पर किसका हक है ?
    ये खुदा से पूछेंगे !

    बेहद संवेदनशील...

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  4. आपकी पोस्ट की चर्चा सोमवार १/०८/११ को हिंदी ब्लॉगर वीकली {२} के मंच पर की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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  5. अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई....

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  6. ना जाने कौन सा कन्धा होगा कौन सी गोदी होगी ,
    जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !
    ना जाने कौन सा आसमां होगा कौन सी जमीं होगी
    जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी ! kitna kuch hai... moh bhi , virakti bhi

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  7. दार्शनिकता से लबरेज़ सुन्दर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  8. मौत का तांडव यहाँ हर रोज होता है !
    कब ,कौन ,कहाँ ,कैसे अपनों को खोता है !
    क्यूँ लाचार है इंसानियत ,क्यूँ हावी है हैवानियत !
    आओ मिलकर ये सोचेंगे
    जिंदगी पर किसका हक है ?
    ये खुदा से पूछेंगे !
    सहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति! बहुत अच्छी प्रस्तुति! हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!!

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  9. pehli baar aapke blog pe aaya..

    kavitayen padhin, kshankaayen padhin, sabhi bahut achhi lagi.....

    ek vichar vyakt karna chahunga ki agar aap apna blog parichay hindi me likhen to, aapke blog ko aur sunder bana dega...mere seemit gyaan ke anusaar, vartmaan parichay me kuchh trutiyan prateet hoti hain..aasha hai aap bura nahi maanengi....

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  10. आपको और आपके परिवार को हरियाली तीज के शुभ अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनायें ....

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  11. कृपया मेरे ब्लॉग

    http://ghazalyatra.blogspot.com/

    पर भी आपका स्वागत है !

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  12. आज स्वजनों के बीच जिया
    कल सबसे बिछुड़ जाना ही तो है !
    ना जाने कौन सा कन्धा होगा कौन सी गोदी होगी ,
    जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !

    very impressive presentation !

    .

    जवाब देंहटाएं
  13. Bahut sundar tarike se sachchai ko bayan kiya hai...badhiya shabd prayog....

    www.poeticprakash.com

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  14. जिस्म और रूह के यथार्थ को कहती अच्छी प्रस्तुति

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  15. आज स्वजनों के बीच जिया
    कल सबसे बिछुड़ जाना ही तो है !
    ना जाने कौन सा कन्धा होगा कौन सी गोदी होगी ,
    जब ये रूह जिस्म से जुदा हो रही होगी !
    बहुत ही गहन भावों को समेटे बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  16. सत्य से रु-ब-रु करवाती एक बेहद उम्दा रचना।

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  17. इस बहुत उम्दा रचना के लिये सादर बधाई स्वीकारें....

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  18. बहुत खूबसूरत भाव

    जिस्म और रूह को तो अलग होना ही है
    पर जब तक साथ है तो उसे सार्थक बना लें

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