तेरी बुलंदी और तटस्थता, 
                         तेरी धवलता और वो चुम्बकीय आकर्षण 
                        जो मुझे अनायास ही खींचता चला गया !
                        तेरे द्रगो के मौन आमंत्रण को पढ़ लिया था मैंने 
                        जिससे वशीभूत होकर ,तेरा स्पर्श पाने को आतुर 
                      तुझे छूने चली आई !
                   पर मेरी अपेक्षा के विपरीत तुझमे कोई हलचल न देख कर 
                   मायूस होकर लौट गई!
                  क्या वो सब मेरा भ्रम था ?
                   चाहत का अनादर सहना मेरे स्वभाव  में नहीं था 
                    तुम्हारे गुरूर को झुकाना 
                    मेरा लक्ष्य बन गया !
                      उद्वेग और उच्श्रन्ख्लता  से ,आहत मन से 
                     मैं नित्य तुम्हारे हर्दय पर प्रहार करने लगी !
                     तुम्हारे मौन तप को मैं  गुरूर समझ बैठी 
                   मेरे दिल से निकली आहों ने ,
                   आकाश और पाताल को झकझोर कर रख दिया !
                  धरा के अन्तः उर में तीव्र कम्पन उत्पन्न हुई, 
                    आकाश ने तुम्हारी तपस्या को भंग करने में 
                   दामिनी का सहारा लिया !
                  मेरा कद तुम्हारे मस्तक तक ऊँचा उठ गया 
                    दस्तक तुम्हारे कर्ण पटल तक पहुंची 
                  तुमने आँखे खोली ,
                       मुझे सामने खड़ा पाया! 
                    तुमने अपने हर्द्य के कपाट खोले 
                 और मुझे आलिंगन बध कर लिया, 
                 पूर्णतः अपने में विलीन कर लिया 
        और इस तरह  हम  इतिहास के साँचे में ढलते चले गए !
गम्भीर वैचारिक सोच से उद्भूत एक सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता। चट्टानों को बार बार भेदती है लहरों की ऊर्जा।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चित्र के साथ मन के भावों को बहुत सुन्दर लिखा है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र के साथ शानदार और लाजवाब कविता! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
खूबसूरत चित्र के साथ मन के भावों को बहुत सुन्दर लिखा है...
जवाब देंहटाएंतेरी बुलंदी और तटस्थता,
जवाब देंहटाएंतेरी धवलता और वो चुम्बकीय आकर्षण
जो मुझे अनायास ही खींचता चला गया !
तेरे द्रगो के मौन आमंत्रण को पढ़ लिया था मैंने
जिससे वशीभूत होकर ,तेरा स्पर्श पाने को आतुर
तुझे छूने चली आई !
जितना सुंदर चित्र, उतनि ही सुंदर रचना
प्रस्तुति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंयह रचना तो बहुत उच्चकोटि की है!
जवाब देंहटाएंहर एक शब्द का प्रयोग बहुत अच्छे ढंग से किया है आपने!
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मगर अक्षरों का लाल रंग बहुत खटकता है!
काले बेकग्राउण्ड में तो हल्का रंग ही अच्छा लगता है!
दोनों का धैर्य...काबिले तारीफ है...तभी प्रेम कहानियां बनतीं भी हैं...
जवाब देंहटाएंएक दूसरे को समझना आवश्यक है....शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachana likhi hai aapane..god bless ..keep it up Rajesh Ji
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चित्र के साथ बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता,सुंदर चित्र,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
रचना के साथ -साथ चित्र भी बहुत सुन्दर थे
जवाब देंहटाएंमुझे ये बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है की हिंदी ब्लॉगर वीकली{१} की पहली चर्चा की आज शुरुवात हिंदी ब्लॉगर फोरम international के मंच पर हो गई है/ आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार को इस मंच पर की गई है /इस मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/इस मंच का लिंक नीचे लगाया है /आभार /
जवाब देंहटाएंwww.hbfint.blogspot.com