you are welcome on this blog.you will read i kavitaayen written by me,or my creation.my thoughts about the bitterness of day to day social crimes,bad treditions .
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मंगलवार, 29 मार्च 2011
रविवार, 27 मार्च 2011
शनिवार, 26 मार्च 2011
एक म्रदुल बूँद मैं बन जाऊं
जीवन की ये डोर पल में टूट जायेगी
किसको पता था प्रकृति रूठ जायेगी !
कंही सुनामी कंही भूकंप
हर ओर मच रहा हडकंप
क्षण भर में चल अचल संपत्ति
यूँ हाथों से छूट जायेगी
किसको पता था प्रकुर्ती रूठ जायेगी !
विषमताओं के इस दौर में कैसे हाथ बताऊँ मै
जख्मों से तड़पते सीनों पर कैसे मरहम लगाऊं मै
शब्दों के कान्धों से कैसे
अश्कों की अर्थी उठाऊं मै!!
अथाह दुखों के सागर मै
एक म्रदुल बूँद बन जाऊं मै!!
गुरुवार, 24 मार्च 2011
होंसला अफ़जाई
राग कभी नहीं फूटता बिन छुए वीणा के तार
बिन उड़े परिंदा क्या जाने क्या रचा बसा उस पार !!
आगे बढ़ तू मन से कर ले होंसला अफ़जाई
बिन किये कुछ हाथ न आये
यही है किस्मत यही खुदाई !!
बुधवार, 23 मार्च 2011
बेरुखी जब हद से गुजर जाए
फूलों से दामन फेर कर कांटो से उलझ जाओ तो मैं क्या करूं
खुशबू को बिसरा कर राह की ख़ाक उठा लाओ तो मैं क्या करूं!!
तेरी राह के पत्थर अपनी पलकों से चुने हमने
तुम फिर भी टकरा जाओ तो मैं क्या करूं !!
तेरे जख्म अपने हाथो से सिये हमने
तुम फिर से ठोकर खाओ तो मैं क्या करूं !!
मेरे गम की खुली किताब से वाकिफ़ हो
तुम फिर भी मुस्कुराओ तो मैं क्या करूं !!
तुम्हे सदा दिल के करीब जाना है हमने
तुम पास से गुजर जाओ तो मैं क्या करूं !!
तेरी आहट के सामने भी सजदे किये हमने
तुम नजरे न मिलाओ तो मैं क्या करूं !!
तेरे घर को सब बलाओं से बचाया है हमने
तुम अपने हाथों से जलाओ तो मैं क्या करूं !!
अपनी तमाम उम्र तुम पर निसार कर दी है हमने
तुम अपनी कब्र अपने हाथों से सजाओ तो मैं क्या करूं !!
रविवार, 20 मार्च 2011
एक शाएरी
बात उल्फत की नजरों से जो समझा न सके
वो क्या समझा पाएंगे यूँ नश्तेर चुभोकर !
दवात की स्याही से ढाई अक्षर जो लिख न सका
वो क्या लिख पायेगा समुंदर में डुबोकर !!
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
होली के तीन वर्ष
चाहत की कलियाँ चुन चुन कर भर लाऊंगा झोली में!
तू श्वेत कमल बन के आना मैं ढूँढ ही लूँगा टोली में !!
उस दिल का हाल बंया कर देना इन नैनों की बोली में
लूट के ले गई थी मुझसे जो पिछले बरस की होली में !!
खूने जिगर के रंग से रंगना क्या रखा अबीर औ रोली में
प्रीत बाण से घायल करना यूँ ही आँख मिचोली में
बच के रहना तू प्रिये तेरी मांग भरूँगा होली में
फिर ले जाऊँगा डोली में अगले बरस की होली में!!
मंगलवार, 15 मार्च 2011
वो क्या जाने
जो पुष्पों के संग ही खेला
काँटों की चुभन वो क्या जाने ,
सेंकता है बर्फ से जो अपने हाथ
अग्नि की तपन वो क्या जाने !!
जो नृप बनकर ही जीता रहा ,
रंक का दमन वो क्या जाने
सर जिसका कभी झुका न हो ,
हरी का नमन वो क्या जाने !!
झोली कभी जिसकी खाली न हो ,
पाने की लगन वो क्या जाने !!
शाएरी
घरोंदे बना -बना कर मिटाते रहे
ख़त लिख-लिख कर जलाते रहे
जाने क्या बैर था हमें अपने दिल से
ओरो के लिए जिसको दुखाते रहे !!
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