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रविवार, 27 जून 2010

अनाथ

मैं वो बूँद नहीं बादल की .कमल जिसे आँचल में भर ले
मैं वो बूँद हूँ विकल सी जिसे देख नागफनी (काक्टुस)भी आँखे बंद कर ले
मैं वो पुष्प नहीं उपवन का जो किसी के कंठ का हार बने
मैं वो उपेक्षित कंटक हूँ किसी पुष्प का निरर्थक ,दुर्नाम!
मैं किसी  पिता का सूरज नहीं ,किसी माँ का चाँद नहीं
किसी शब्द कोष में मेरा कोई नाम नहीं !
ना किसी बांहों का घेरा
ऐसा एकाकी जीवन मेरा !
फिर भी मैं हूँ ,मेरे जीने का मकसद है
अपने लिए नहीं ओरों के लिए जिन्दा हूँ
मेरी भी आँखे रोती हैं उन मासूमो के लिए 
जिनको कलयुग के देत्यों ने अनाथ बना डाला
अब मैं उन अनालंबो का अक्लांत सहारा हूँ
अब न वो अनाथ हैं न मैं अनाथ हूँ !!

1 टिप्पणी:

  1. .....अब न वो अनाथ हैं न मैं अनाथ हूँ !! कविता भावपूर्ण है...बधाई......कविता को थोड़ी सी एडिट करने की जरुरत है..वैसे ब्रेकेट में शब्द लिख कर पाठक को समझाने की जरुरत नहीं होती.. शब्दों के थोड़े से संपादन से कविता और भी सुन्दर बन सकती है...मेरी हार्दिक बधाई...

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