ज़ख्म काँटों से खाए हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता
इश्क़े सफीने बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता
इसे तुम बुजदिली कह लो या समझो शाइस्तगी मेरी
हुए अपने पराये हैं हमें सच्चाई छुपाना नहीं आता
किसी ने दिल से निकाला किसी ने राह में फेंका
सर पे हमने बिठाए हैं हमें ठोकर से हटाना नहीं आता
कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली
दिलों में घर बसाए हैं हमे महलात बनाना नहीं आता
शहर में धर्मों के भूसों के बड़े ढेर लगे हैं
भले माचिस थमाए हैं हमे चिंगारी लगाना नहीं आता
जहाँ में ईंटें भी देखी सामने फर्ज भी देखे
प्यार के सेतु बनाए हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता
मेरी नस नस में बसी देश की माटी की है खुशबु
चाहे परदेस में जाएँ हमे स्वदेश भुलाना नहीं आता
क्या होती है आजादी ये पंखों पे लिखा है
मुक्त पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना नहीं आता
"राज" ने जीत भी देखी औ कभी हार भी देखी
लम्हे दिल में छुपाये हैं हमे दुनिया को जताना नहीं आता
ज़ख्म काँटों से खाए हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता
इश्क़े सफीने बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता
इसे तुम बुजदिली कह लो या समझो शाइस्तगी मेरी
हुए अपने पराये हैं हमें सच्चाई छुपाना नहीं आता
किसी ने दिल से निकाला किसी ने राह में फेंका
सर पे हमने बिठाए हैं हमें ठोकर से हटाना नहीं आता
कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली
दिलों में घर बसाए हैं हमे महलात बनाना नहीं आता
शहर में धर्मों के भूसों के बड़े ढेर लगे हैं
भले माचिस थमाए हैं हमे चिंगारी लगाना नहीं आता
जहाँ में ईंटें भी देखी सामने फर्ज भी देखे
प्यार के सेतु बनाए हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता
मेरी नस नस में बसी देश की माटी की है खुशबु
चाहे परदेस में जाएँ हमे स्वदेश भुलाना नहीं आता
क्या होती है आजादी ये पंखों पे लिखा है
मुक्त पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना नहीं आता
"राज" ने जीत भी देखी औ कभी हार भी देखी
लम्हे दिल में छुपाये हैं हमे दुनिया को जताना नहीं आता
ज़ख्म काँटों से खाए हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता
हमें फूलों को सताना नहीं आता
हमें फूलों को सताना नहीं आता
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ओबीओ कविसम्मेलन/मुशायरा हल्द्वानी में अपनी नज़्म पढ़ते हुए 15/6/13
ओबीओ कविसम्मेलन/मुशायरा हल्द्वानी में अपनी नज़्म पढ़ते हुए 15/6/13