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शुक्रवार, 18 जून 2010

मैं एक सदय नन्हा सा दीपक हूँ

 दिवाली दीपों का त्यौहार है ,दीपक का अपना ही एक महत्व है, अलग अलग अवसर पर अपना योगदान है मेरे नजरिये से दीपक के कितने रूप हैं ......
मैं एक सदय नन्हा सा दीपक हूँ 
मेरी व्यथा मेरे मोद-प्रमोद की कहानी

तुमको सुनाता हूँ आज अपनी जुबानी

मैं एक नन्हा सा दीपक हूँ !
 मैं निर्धन की कुटिया का दिया
,चाहत ममता के साए में पला
माँ की अंजलि और आँचल की छाँव में जला

मैं जरूरतों का दिया ,मैं निर्धनता का दिया !


मैं महलों व् ऊँची अट्टालिकाओं का दिया

इसके तिमिर को मैंने जो दिया है उजाला

उन्ही उजालो ने मेरी हस्ती को मिटा डाला

मैं उपेक्षित सा दिया ,मैं जर्जर सा दिया !


मैं आरती का दिया

चन्दन ,कर्पुर ,धूप से उज्जवल भाल

मन्त्र स्त्रोतों में ढला चहुँ ओर पुष्पमाल

मैं अर्चना का दिया ,मैं पुष्पांजलि का दिया !



मैं शमशान का दिया

मैं जिनके करकमलों में ढला.जिनके लिए हर पल जला

उनकी शव यात्रा में आया हूँ

इहि लोक तज उह लोक की राह दिखाने आया हूँ

मैं सिसकता दिया ,मैं श्रधांजलि का दिया !

मैं एक नन्हा सा दीपक हूँ !!



मैं नन्हा दीपक बन गया शहीदों की अमर ज्योति

या समझो ख़ाक का या समझ लो लाख का मोती !!