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रविवार, 16 फ़रवरी 2014

साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक(ग़ज़ल )

जब तलक पँहुचे लहर अपने मुहाने तक
साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक

हीर राँझे की कहानी हो  बसी जिसमे
ले चलोगे क्या मुझे तुम उस जमाने तक

प्यार का सैलाब जाने कब बहा लाया
हम सदा डरते रहे आँसू बहाने तक

थी बहुत मासूम अपने प्यार की मिटटी
दर्द ही बोते रहे अपने बेगाने तक

क्यों करें परवाह हम अब इस ज़माने की
हर कदम पे जो मिला बस दिल दुखाने तक 


छोड़ दी किश्ती भँवर में आज ये साथी  
जिंदगी गुजरे फ़कत अब इक फ़साने तक

तू मेरा महबूब अब ये जिंदगी तेरी
खूब गुजरेगी ख़ुदा के पास जाने तक

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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

जय जय प्रीत दिवस (हास्य व्यंग्य )

कुण्डलिया 
चंदा बरसाता अगन ,सूरज देखो ओस
मूँछ एँठ जुगनू कहे ,चल मैं आया बॉस
चल मैं आया बॉस ,शमा को नाच नचाऊं
कर लूँ दो-दो हाथ ,शलभ को प्रीत सिखाऊं
मेरी देख उड़ान ,भाव भँवरे का मंदा
तितली करती डाह ,मिटे फूलों पर चंदा

||तीन दोहे|| 
   दिल सागर में आज क्यों ,उठे प्रेम का ज्वार|
देकर  लाल गुलाब को ,करते हैं इजहार||

परसों नभ को दिल दिया,कल धरा को रोज|
   चाँद आज मन में बसा,रवि को किया प्रपोज||

 कलिका से प्रोमिस करें ,तितली को दें डेट|
  इन भँवरों का क्या धरम ,कहें सुमन से वेट||