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शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं


हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं
शबनमी बूंदे ज्यों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं

लूट कर अम्नो चमन को चल पड़े हो तुम जहाँ  से
बद दुआओं की वहां किरचें बिखरती जा रही हैं

अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के
देख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं

हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने
रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं

बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं

जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से
नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं


या ख़ुदा पर्दों के पीछे छुप गईं तहज़ीब अब तो
सूरतें जो जुल्म गर्दों की  निखरती जा रही हैं

पर गुलामी कैद से जिसको शहीदों ने बचाया
उस कमल की 'राज' पंखुड़ियाँ उखड़ती जा रही हैं
**********************************

ख़ार =कांटे
शादाव=हरीभरी
किरचें =छोटे छोटे कण
रश्मियाँ =सूर्य की किरणें
रिदाएँ =चादरें

सहरा =रेगिस्तान

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के
    देख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं

    वाह बहुत सशक्त बिम्ब और अर्थ की धार है।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दरतम भावों को समेटे सरिता प्रवाह , प्यासी नदियाँ प्यासे सागर

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह! वाह!! वाह!!! शानदार प्रस्तुति। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. काफी अच्छा लगा.

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  7. बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
    देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं ..

    सच की अभिव्यक्ति है ये शेर .... बहुत ही लाजवाब शेर है ...

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  8. बहुत सुन्दर गहन प्रस्तुति..

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