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मंगलवार, 14 मई 2013

मैं कैसे सोऊँ ??

मैं  कैसे सोऊँ ??
नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ 
 व्याकुल जग पंथ निहारता 
जब गर्भ नाल में  हुई पीड़ा  
रक्त माँ- माँ कह पुकारता 
मैं कैसे सोऊँ ?
जब  बिस्तर उसका हुआ गीला 
वो करवट करवट जागता 
मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर 
पय उदधि हिलौरे मारता 
मैं कैसे सोऊँ ?
मैं रोटी का कौर लिए फिरती 
वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता 
मैं  कलम किताब दूँ हाथों में  
वो आगे- आगे भागता 
मैं कैसे सोऊँ ?
जब देर सवेर घर में आता 
शंकित मन फन फुफकारता 
वो प्रश्न का उत्तर ना देकर 
 निष्पंद शून्य में ताकता 
मैं कैसे सोऊँ ?
मैं रात दिन उसकी राह तकूँ 
मन उसकी खबर  सिहारता 
 हर वक़्त मुझे है फिकर उसकी 
जब वो सरहद पर जागता 
मैं कैसे सोऊँ ?
जब अंश मेरा हो खतरे  में 
वक़्त खड़ा धिक्कारता 
होकर जख्मी ज्यों अरण्य सिंह  
अस्तित्व मेरा हुंकारता 
मैं  कैसे सोऊँ ??
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11 टिप्‍पणियां:

  1. माँ कि महता को दर्शाती सुन्दर काव्य रचना !!

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  2. सच माँ कहाँ सो पाती है...बहुत सुन्दर प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  3. माँ को अपने संतान की चिंता तो सदैव रहती है
    सुन्दर रचना
    सादर !

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  4. माँ किसी न किसी बहाने जागृत रहती है .
    सुन्दर भाव !

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  5. बच्चे की परवरिश में माँ यूं ही जागती रहती है ...

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  6. माँ तो अंतिम समय तक जागती रहती है बच्चे के लिए ... उसका स्नेह स्त्रोत कभी नहीं सूखता ... भावमय अभिव्यक्ति ...

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  7. माँ की ममता का कोई मोल नहीं..भावमय सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  8. मैं कैसे सोऊँ ??
    माँ की ममता का यह रूप भी वंदनीय है ....
    सादर नमन

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  9. मैं कैसे सोउं. माँ के रूप में तो प्रकृति स्वयं साक्षात अवतरित होती है और प्रकृति भला कैसे सो सकती है उसे तो जनना है, नई सृष्टी को, उसे तो जीवन देना है, वो भला सो कैसे सकती है. बहुत सशक्त रचना.

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