घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल|
दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||
बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|
बेटी से बेटे
मिलें ,बेटा आँखें खोल||
घर की रौनक बेटियाँ,दो-दो घर की लाज|
उनको ही आहत करे ,कैसा कुटिल समाज||
खाली
कमरा रह
गया,अब बिटिया के बाद|
चौखट
भी है सीलती
,जब-जब आये याद||
बेटों को सब मानते ,करते उन्नत
भाल|
बेटी को अवसर मिलें, छूले गगन विशाल||
बेटी को काँटा समझ ,मत करना तू भूल|
बेटी भी बनकर खिले, उस डाली का फूल||
घटती जाएं बेटियाँ
, बढ़ते जाएं लाल|
बिगड़ेगा जो संतुलन,बदतर होगा हाल||
पीढ़ी बेटों से चले , बेटों से ही वंश|
नहीँ रहेंगी बेटियाँ ,कहाँ रहेगा अंश||
कैसे अब आँगन फले, कहाँ रहेगा अंश|
जीवन अब कैसे चले,किस्मत झेले दंश||
पीढ़ी अब कैसे चले ,कहाँ बढ़ेगी बेल|
यूँ कन्या को मार के,रचे अंत के खेल|| ********************************