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मंगलवार, 24 जुलाई 2012

सावन के महीने में


(रूप घनाक्षरी )
पड़े हैं झूले सावन के झूमे तरु की डाल,गीत सुनाएँ गोपियाँ पेंग बढाए गोपाल ||
ओढ़े मेघ चुनरिया कभी धानी कभी लाल,श्रृंगार कर सुहागिनें जाती हैं ससुराल ||
भाद्रपद कृष्ण तृतीया को आता ये त्यौहार,कजली गावें लडकियाँ झूलन की बहार||
बूढ़ी तीज, वृद्ध तृतीया दोनों एक ही जान,वधुवें झूला झूलती बायना करी दान|| 
(कुण्डलियाँ छंद )
झूले तीजों के सजे ,देव शिवा का धाम 
जन-जन के मुख पे रहे,शिव शंकर का नाम  
शिवशंकर का नाम ,जपें उपहार सजावें
गावें कजरी गीत ,प्रिय घन नेह बरसावे
कर सोलह श्रृंगार ,मगन हो सुधबुध भूले 
सजन बढाये पेंग ,सजनी प्यार से झूले ||


16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... बहुत ही मनभावन ... तीज की मस्त बहार ...

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  2. तीज पर मन भावन रचना !बहुत सुन्दर..

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  3. सुन्दर सावन गीत . शायद इसी से रिम झिम सावन आ जाए .

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  4. सावन को जीवंत कर दिया...आपने...

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  5. आदरणीया राजेश कुमारी जी मन भावन श्रावणी रचना ..मन हरा तारो ताजा ..सुन्दर प्रणय भाव
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  6. कविता का सम्पूर्ण श्रृंगार....
    पूरा माहौल ही श्रृंगारमय हो गया..
    आभार

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  7. .

    क्या बात है !
    बहुत सरस सावनी रचनाएं हैं …

    कुंडली कमाल है !


    आभार !

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  8. सावन अपने सर्वोच्च रंग में ... यहीं है।

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  9. bula kr aapne sawan,mausm suhana ke dia,bebso ki jindgi me rang sare bhar dia. jivan kr dia sawan ko

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