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शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

स्वप्न या पूर्वाभास

कितना भयावह अँधेरा है 
दम घुट रहा है 
आत्मा झुलस रही है 
शुन्य के बीच में ,
कहाँ हूँ मैं ?
काली काली परछाइयाँ 
इर्द गिर्द घूम रही हैं !
तेरे आंसुओं के समुद्र में 
डूबती जा रही हूँ ,
कुछ दूर से सिसकियों की 
दबी आवाजें ह्रदय को विदीर्ण कर रही हैं! 
दर्द के सहस्त्रों द्वारों से, 
गुजरते हुए भूगर्भ में चली जा रही हूँ !
हर द्वार पर खड़ा 
कसक का एक खंजर 
मेरे जिस्म को छलनी
करता जा रहा है 
एक कसक 
अब कौन समझेगा तेरे अंतर्मन की जुबां,
अपनों की बैसाखी तो कब की टूट चुकी 
जो तेरा संबल बने 
ऐसा कौन है यहाँ !
जिसका हाथ तेरी हर करवट पर 
तेरे मस्तक को छुए 
ऐसा कौन है यहाँ !
यहाँ तो डूबती नाव की सवारी हैं सभी 
इसे जो पार लगा दे 
वो मल्लाह वो पतवार कहाँ ?
यही सोच कर बिखर  रही हूँ मैं 
जला दिया है इन्होने मुझे 
पर अभी सिसक रही हूँ मैं  
कुरेद कर देख मेरी राख को तू
अभी जिन्दा हूँ मैं 
अभी जिन्दा हूँ मैं !! 




  

31 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द ...कितना दर्द ....आज मन उदास है ....
    मैं भी डूब गयी आपके साथ इसी दर्द में ...
    बहुत सुंदर रचना ...
    मर्मस्पर्शी....!!

    जवाब देंहटाएं
  2. भावनाओं को बहुत सजीव चित्रण किया है आज आपने अपनी रचना में!
    चित्र भी बहुत अच्छा लगाया है इसके साथ!

    जवाब देंहटाएं
  3. उफ़ ……………दर्द ही दर्द भर दिया। बेहद मर्मस्पर्शी।

    जवाब देंहटाएं
  4. यहाँ तो डूबती नाव की सवारी हैं सभी
    इसे जो पार लगा दे
    वो मल्लाह वो पतवार कहाँ ?
    यही सोच कर बिखर रही हूँ मैं
    जला दिया है इन्होने मुझे
    पर अभी सिसक रही हूँ मैं
    कुरेद कर देख मेरी राख को तू
    अभी जिन्दा हूँ मैं
    अभी जिन्दा हूँ मैं !! nihshabd karta dard

    जवाब देंहटाएं
  5. so nice post
    मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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  6. आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक- 08-08-2011 सोमवार के चर्चा मंच पर भी होगी, सूचनार्थ

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  7. कुरेद कर देख मेरी राख को तू
    अभी जिन्दा हूँ मैं
    अभी जिन्दा हूँ मैं !!
    खूबसूरत अंदाज़ आपकी प्रस्तुति के, भाव जगत को आंदोलित करती .बधाई . /
    शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
    Erectile dysfunction? Try losing weight Health.
    कुरेद कर देख मेरी राख को तू
    अभी जिन्दा हूँ मैं
    अभी जिन्दा हूँ मैं !!

    जवाब देंहटाएं
  8. राख में दबी चिंगारी को हवा देने की ज़रूरत है...

    जवाब देंहटाएं
  9. kavita ke ant tak pahunchte pahunchte tak sihar jaaye insaan...gazab ki rachna...!!


    humara bhi hausla badhaaye:
    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  10. हैप्पी फ़्रेंडशिप डे।

    Nice post .

    हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
    बेहतर है कि ब्लॉगर्स मीट ब्लॉग पर आयोजित हुआ करे ताकि सारी दुनिया के कोने कोने से ब्लॉगर्स एक मंच पर जमा हो सकें और विश्व को सही दिशा देने के लिए अपने विचार आपस में साझा कर सकें। इसमें बिना किसी भेदभाव के हरेक आय और हरेक आयु के ब्लॉगर्स सम्मानपूर्वक शामिल हो सकते हैं। ब्लॉग पर आयोजित होने वाली मीट में वे ब्लॉगर्स भी आ सकती हैं / आ सकते हैं जो कि किसी वजह से अजनबियों से रू ब रू नहीं होना चाहते।

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  11. अब कौन समझेगा तेरे अंतर्मन की जुबां,
    अपनों की बैसाखी तो कब की टूट चुकी
    जो तेरा संबल बने
    ऐसा कौन है यहाँ !
    कहाँ से लाये वो अंदाज़ मुस्कुराने के वो बदनसीब जिसे लैब मिले ,हनी न मिली .दर्द की जुबान को साकार करती प्रस्तुति ,बूझने के लिए कई मर्तबा पढ़ी -
    शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
    Erectile dysfunction? Try losing weight Health
    ...क्‍या भारतीयों तक पहुच सकेगी यह नई चेतना ?
    Posted by veerubhai on Monday, August 8
    Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Bio Cremation, जैव शवदाह, पर्यावरण चेतना, बायो-क्रेमेशन /http://sb.samwaad.com/

    जवाब देंहटाएं
  12. जिसका हाथ तेरी हर करवट पर
    तेरे मस्तक को छुए
    ऐसा कौन है यहाँ !
    यहाँ तो डूबती नाव की सवारी हैं सभी
    इसे जो पार लगा दे
    वो मल्लाह वो पतवार कहाँ ?

    मन की कसक की भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    कविता पाठक के मनोभावों के साथ तादात्म्य स्थापित कर पाने में सफल हुई है।

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  13. Bahut hi badhiya rachana hai...is rachana ka har ek shabd apane aap hi bahut kuchh bol raha hai....aabhar

    Swagat hai aapaka mere blog par..

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  14. "दर्द के सहस्त्रों द्वारों से,
    गुजरते हुए भूगर्भ में चली जा रही हूँ !
    हर द्वार पर खड़ा
    कसक का एक खंजर
    मेरे जिस्म को छलनी
    करता जा रहा है"...दर्द को क्या खूब उकेरा है आपने ..वाह...!

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  15. अब कौन समझेगा तेरे अंतर्मन की जुबां,
    अपनों की बैसाखी तो कब की टूट चुकी
    जो तेरा संबल बने
    ऐसा कौन है यहाँ !

    man ke jabaaton kokhbsurti se bayankiya hai aapne waah ...........bahut umda

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  16. दर्द को बखूबी शब्दों में उतरा है आपने.. रचना पढ़ते ही उस दर्द महसूस कर सकते है...

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  17. मर्मस्पर्शी रचना जिसका स्पंदन महसूस होता है...
    सादर...

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  18. बहुत ख़ूबसूरत, भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना! उम्दा प्रस्तुती!

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  19. bahut hi dardmai gahan abhibyakti .dil ko dard se bhar diya,badhaai aapko.

    "ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

    जवाब देंहटाएं
  20. अंतर्मन की व्यथा बखूबी शब्दों से बयान हुई है. सुंदर कविता के माध्यम से यथार्थ को पहचानने की सार्थक कोशिश.

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