निष्ठुर हाथों ने बचपन छुड़ाया
ज़माने की ठोकर ने चलना सिखाया !
अभी खिसकना सीखा था
वक़्त ने कैसे खड़ा किया
कुछ कठोर सच्चाई ने
कुछ प्राकर्तिक गहराई ने
कुछ पिघलते भावों ने
कुछ सिसकते घावों ने
कुछ टूटती कसमों ने
कुछ खोखली रस्मों ने
कुछ बेमानी बातों ने
कुछ अपनों की घातों ने
कुछ समाज की गहरी चालों ने
कुछ दोगली फितरत वालों ने
समय से पहले बड़ा किया
अभी खिसकना सीखा था
वक़्त ने कैसे खड़ा किया !!
समय की ठोकरें ऐसी ही होतीं हैं कि समय से पहले बड़ा कर देतीं है.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति जो दिल के कटु उद्गारों को प्रकट कर रही है.आभार.
ज़िन्दगी की तल्ख़ मगर सच्ची बात ..बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में व्यापक संदेश निहित है।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! शुभकामनायें
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंजमाने की ठोकर ने चलना सिखाया और निष्ठुर हाथों ने बचपन छुडाया बहुत सच्ची बात । सच्चाई गहराई/भाव धाव/ कस्मे रस्में/बातें धातें/शब्दों का उत्तम चयन । और समय से पहले बडा किया चिन्तन योग्य । कुछ बच्चे 80 साल जैसे अनुभवी हो जाते है और कुछ बूढे 8 साल के बच्चे जैसे रह जाते है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति|आभार|
जवाब देंहटाएंजमाने की ठोकर ने चलना सिखाया... क्या बात है। बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है आपने
जवाब देंहटाएं!!आपका स्वागत है!!
जवाब देंहटाएंAAJ KA AGRA
Active Life
बहुत खूब लिखा है आपने.बहुत ही संवेदनशील रचना.
जवाब देंहटाएंआपकी कलम को सलाम.
बहुत याद आती है तेरी औ बचपन!
जवाब देंहटाएंकभी नही बिसरा सकते हम,
उम्र भले ही हो पचपन!
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बहुत सशक्त रचना!