छोड़ दो आदत पुरानी
पतंगों से पेंच लड़ाने की
काट के गर्दन किसी की
कहकहे लगाने की !
अब समझो न इसको दुर्बल
स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता
बढाते हैं अब इसका मनो बल !
उच्च शिक्षा और ज्ञान से
बनी है ये डोर नई जमाने की
काट न पाओगे इसको
छोड़ो ये जिद बढ़ाने की !
करो न अब ये भूल
न झूठे दंभ के स्तम्भ पर चढ़ते रहो
बेहतर है अब नील गगन में
इसके संग संग उड़ते रहो !
एक दूजे के संबल हो
ये बात नहीं भूल जाने की
छोड़ दो आदत पुरानी
पतंगों से पेंच लड़ाने की !!