आज तुमने बुलाया तो चली आई  
मगर ये तुम भी जानते हो  
न तुमने बुलाया दिल से न मैं दिल से आई  
अच्छा हुआ जो तुम मेरी महफ़िल में नहीं आये 
क्यूंकि तुम अदब से आ नहीं सकते थे 
और मैं औपचारिकता निभा नहीं सकती थी 
आयोजन में कस के गले मिले और बोले  
अरे बहुत दिनों बाद मिले हो अच्छा लगा आप से मिलकर 
सुनकर हम दोनों के घरों के पड़ोसी गेट हँस पड़े   
 सुबह से भोलू
गांधी जी की प्रतिमा को रगड़-रगड़ कर साफ़ रहा है 
 परिंदे आज
बहुत  खुश हैं 
 चलो कम से कम
एक साल में तो उनका शौचालय साफ़ होता है 
गंगा खुश है आज उसे गुदगुदी हो रही है वो हँस रही
है   
शायद कोई गंगा दिवस भी घोषित हो जाए 
और वो भी एक औपचारिकता के अध्याय में जुड़ जाए.  
 
 
