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मंगलवार, 26 अगस्त 2014

सर्कस एक जिन्दगी (रोला छंद पर आधारित )

सर्कस का संसार ,रहे कायम ये जबतक   
अद्भुत कारोबार , चक्र सा चलता  तबतक  
चलते फिरते गाँव ,शहर कस्बों में जाते
विस्मित होते लोग ,नये करतब दिखलाते


जोखिम में हैं जान ,नहीं पर चिंता इनको    
कहाँ करें परवाह ,पेट भरना है जिनको
कलाकार करतार ,करे इनकी  रखवाली
करती ऊर्जावान ,इन्हें लोगों की ताली

नित्य करें अभ्यास ,सभी मिलजुल कर रहते
हार मिले तो मार ,जानवर भी हैं सहते
चटख रंग परिधान ,पहनते हैं ये सारे
चका चौंध के बीच ,लगें आखों को प्यारे



 चलें डोर पर चार,हवा में ये लहराते
 हो ना हो विशवास ,बड़े करतब कर जाते   
तन मन का अभ्यास, यंत्र वत इन्हें बनाता
राह सभी आसान ,पाठ बस यही सिखाता


गज़ब संतुलन खेल ,रचाता देखो पहिया
 रोटी की दरकार, कराती ता ता थैय्या
अपने गम को भूल ,हँसाता खुशियाँ बोकर
सर्कस की है जान ,मस्त रंगीला जोकर

जिन्दा है प्राचीन ,कला जो ये हैरत की
इसमें है आयुष्य ,पुरा संस्कृति भारत की
सर्कस के ये खेल ,हुए अब देखो सीमित
जर्मन औ यूरोप ,इन्हें बस रखते जीवित
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गुरुवार, 21 अगस्त 2014

राखी (लघु कथा )


“भाभी अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ  भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|
अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा ‘रीना राखी

 पँहुच गई हैं” पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी!!! ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

रविवार, 10 अगस्त 2014

रक्षाबंधन विशेष (माहिया विधा पर आधारित)

ऋतु बड़ी सुहानी है 
घर आ जा बहना 
राखी बँधवानी है ||
अम्बर पे बदरी है 
भैया आ जाओ 
तरसे मन गगरी है |
बहना अब दूरी है 
कैसे आऊँ मैं 
मेरी मजबूरी है ||
कोई मजबूरी ना
आ न सको भैया 
इतनी भी दूरी ना ||
नखरे थे वो झूठे 
मैं आ जाऊँगा 
बहना तू क्यूँ रूठे |
परदेश बसी बहना 
रक्षा बंधन है 
बस तेरा खुश रहना |
चंदा भी मुस्काया 
राखी बँधवाने 
प्यारा भैया आया ||
पूजा की थाली है 
हल्दी का टीका 
राखी नग वाली है ||
राखी तो बांधेगी 
मुँह करके मीठा 
तू नेग भी मांगेगी ||
आगे कलाई करो 
नेग न मांगू मैं
बस सिर पे हाथ धरो||
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