माँ तेरी इन आँखों में क्यूँ दोरंगी तस्वीर दिखे
इक नदिया से मोती बहते दूजे से क्यूँ नीर दिखे
खुश रह ले तू इस जीवन में ऐसे क्यूँ हालात नहीं
गम को पीकर हँसती है तू पर बातों में पीर दिखे
बेटी अपनी सावित्री या सीता का क़िरदार अगर
दूजे की बेटी में
उनको फिर क्यूँ लैला हीर दिखे
भारत अपनी आजादी की जब दिखलाऐ शान यहाँ
आँखों पर पट्टी तेरे
क्यूँ पैरों में जंजीर दिखे
नारी को पूजा करते थे पहले जग के लोग सभी
क्यूँ मर्दों की नजरों में औरत अपनी ज़ागीर दिखे
जिस नारी को मिलता था इक देवी का सम्मान यहाँ
अब सामाजिक दर्पण
में उसकी झूठी तौक़ीर दिखे
बिसरा देते जो डाली को पतझड़ के आगाज़ बिना
मौसम कहता है फूलों में तहज़ीबी तासीर दिखे
इक-इक मजहब के खेमों में धज्जी-धज्जी जान बटी
भारत माता की सोचूँ तो गर्दिश में तकदीर दिखे
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