होली खेल
कर थका मांदा
अधखुली
पलकों से पलंग पर लेटा था
उसका सर
मेरी पेशानी पर झुका था
उसकी
सुनहरी लटें चेहरे पर
गुदगुदी
पैदा कर रही थी
उसने अधरों की कोमल पंखुड़ियों
से मेरे
गाल को स्पर्श किया
तो उस
वक़्त मैं खुद को
दुनिया का
सबसे खुशकिस्मत इंसान
समझ रहा
था
अचानक दो
गर्म बूंदे मेरे मुख पर पड़ी
उसे आज
जुकाम था
अचानक उसने अपने दो दांत
मेरे गाल
पर गड़ा दिए
मैं चीखा
तो वो हँसने लगी
मैंने लपक
कर उसे बाँहों में
भर लिया
तो पूरा गीला हो गया
फिर मैं जोर से बोला
अजी सुनती
हो इसका डाइपर बदल दो