गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
मेरी चिरैया कितना
उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
पूछेगी फिर बेला चमेली
कितनी चढ़ी ऊँचाई पर
इस घर में नही कोई सीढ़ी
छोटी है दीवाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
जब वो हंसती कितनी झरती
मुक्तक मणियाँ मुखड़े से
समझाना यहाँ मेरी झोली
अब है मालामाल
सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
पूछेगी उसकी अँखियों का
कजरा अब कितना खिलता
खोल के तू अपने हाथों से
देना ये रुमाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
सुनके मेरी बातें अगर
जो
मैय्या का उर भर आयें
तुझको कसम है इस बहना की
लेना तू सम्भाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
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