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सोमवार, 30 सितंबर 2013

नव ब्रह्मांड

छंदत्रिभंगी
जोड़ो   चार  हाथ ,अब एक साथ , नव ब्रह्मांड उठा लाओ
रख अडिग विश्वास ,अविरल प्रयासभूमंडल पर छा जाओ
कल धरा सँवारे  हाथ तुम्हारे , ,मन में प्रण कर जाओ
जो देश बांटती ,धरा काटतीवो दीवारें   ढा जाओ

दुर्मिल सवैया
दस हाथ जहां जुड़ते मन से ,ब्रह्माण्ड वहीँ झुकता बल से
धुन ख़ास रहती  मन में ,हर काम वहीँ  सधता  हल  से
अवधान बिना अभिप्राय  बिना , कुछ जीत नहीं सकता छल से
सहयोग बिना सदभाव  बिना , खुद  नीर नहीं उठता तल से
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सोमवार, 23 सितंबर 2013

बेटी को बचा लो !!! (लघु कथा )

"भाभी कहाँ से लायी हो इतनी सुन्दर दुल्हन ? नजर ना लगे", श्यामला ने घूंघट उठाते ही कहा, "..ऐसा लगे है जैसे कौव्वा जलेबी ले उड़ा.."
दूर बैठी श्यामा ने जैसे ही दबी जबान में कहा, खिलखिलाहट से सारा कमरा गूँज उठा  
"
श्यामा भाभी कभी तो मीठा बोल लिया करो.. मेरा भतीजा कहाँ से कव्वा लगता है तुम्हे ? मेरे घर का कोई शुभ काम तुम्हे सहन नहीं होता तो क्यूँ आती हो ?" श्यामला ने आँखें तरेरते हुए श्यामा को कहा।

मुंह दिखाई का सिलसिला चल ही रहा था कि पड़ोस का नन्हें बदहवास-सा दौड़ता हुआ आया और हकलाते हुए बोला, "..श्याऽऽऽ ... ला चाचीऽऽऽऽ... छोरी बगल के खेत में बोरवेल में गिर गईऽऽऽ..." 
यह कह कर वो बदहवास ही वापस भागा.
सुनते ही जैसे वहाँ वज्रपात हो गया. श्यामला खूनी नजरों से श्यामा को देखते हुए बोली, "..कब से कह रहे थे उस गड्ढे को ढक दो. रोज टीवी में आवे है कि ऐसे बोरवेलों में बच्चे गिरते हैं... पर तुमने तो एक ना सुनी.. आज मेरी छोरी को कुछ हो गया तो तेरी सात पुश्तों को भी ना छोडूंगी..."  गरजती हुई श्यामला बाहर की और भागी

पीछे से श्यामा भी चीखती हुई भागी, " अपनी छोरी को ना रोक सके ? सारा दिन टांग उठाये दौड़ती फिरती है..! छोरी ही तो है.. और पैदा कर लियो... आज तक छोरी ही तो जनती आई है तू...  ",  फिर औरों को देखती हुई बोली, "अब इसके तस्मे ढीले होएंगे.. बड़ी आई थी ग्राम पंचायत में चुनाव लड़ने.."
सब लोग बोरवेल की और भाग रहे थेश्यामला पागल सी हो सिर खुल्ले छाती पीटती हुई बोरवेल पर पंहुचकर गिर पड़ी, कि, इतने में दो नन्हे हाथ पीछे से उसके गले में लिपट गए. हतप्रभ श्यामला पत्थर सी हो गई जब उसने देखा, उसकी अपनी बेटी घबराई हुई उससे लिपट रही है. आँखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला.  
सब आवाजें मद्धिम होती जा रही थीं.. लोग फुसफुसा रहे थे..  "श्यामा की बेटी को कोई तो बचा लो.... !!!.." 
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सोमवार, 16 सितंबर 2013

हे नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!


हे नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे 
नई डगर पे अपना जीवन मोड़ दे!!

राहों में जब 
तेरी कंटक आयेंगे
उलझेंगे फिर 
मन को बहुत डरायेंगे
आगे बढ़कर उस डाली को तोड़ दे 
जहरीली मूलों को तू झिंझोड़ दे 
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

घर के तेरे 
दरवाजे भी टोकेंगे 
मर्यादा की 
बैसाखी से रोकेंगे 
आगे बढ़कर उनके रुख को मोड़ दे 
घूंघट में छुप कर शर्माना छोड़ दे 
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

दुश्मन तेरे 
होंसलों को ढापेंगे 
अवसर पाकर 
तेरे कद को नापेंगे 
उठकर उनकी गर्दने तू मरोड़ दे 
अबला तू खुद को कहलाना छोड़ दे 
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

तेरे साथी 
घर से बाहर आयेंगे 
तेरे क़दमों 
से वो कदम मिलायेंगे 
एक हाथ से दूजा हाथ तू जोड़ दे 
दुराचारियों के मंसूबे तोड़ दे 
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

तुझ में दुर्गा
तुझी में शक्ति छुपी हुई 
समझा दे तू 
बैरी को अब अति हुई 
झूठे बंधन झूठी रस्में छोड़ दे 
राहों के पत्थर ठोकर से फोड़ दे 
हे नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
नई डगर पे अपना जीवन मोड़ दे!! 
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