you are welcome on this blog.you will read i kavitaayen written by me,or my creation.my thoughts about the bitterness of day to day social crimes,bad treditions .
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शनिवार, 30 मार्च 2013
सोमवार, 25 मार्च 2013
उसकी सहेलियों ने टब में डुबा के मारा(हास्य ग़ज़ल )
चिलमन गिरा के मारा चिलमन उठा के मारा
दिल फेंक आशिकों को यूँ दिल जला के मारा
नाराज
आशिकों
में
होती
रही
ये
चर्चा
जिस
रूप
के
दीवाने
उसने
जला
के
मारा
होली की आड़ में था उसका घिनौना मकसद
गुझिया में भांग विष की मदिरा पिला
के मारा
बच्चों से जा के उलझा वो भांग के नशे
में
इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा
जिस को सता रहा था वो फाग के बहाने
उसकी सहेलियों
ने टब में डुबा के मारा
अनजान बन रहा था शौहर बड़ा खिलाड़ी
बीबी ने आज शापिंग का बिल दिखा के
मारा
दिन रात जिस बहन को मिस काल भेजता
था
उसके ही भाइयों ने कंबल उढ़ा के मारा
छेड़ा पड़ौसिनों को जो रंग के बहाने
बीबी ने जोर से फिर बेलन घुमा के मारा
जनता ने वोट देकर जिस शख्स को जिताया
उसका उसी शहर ने पुतला जला के मारा
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गुरुवार, 21 मार्च 2013
इक दूजे पर डालिये ,पुष्प रंग के घोल
मौसम
में
भी
मच
रही,
फागुन
की
अब
धूम|
झूमें
हँस-हँस
मंजरी,
भँवरे
जाते चूम||
डाल-डाल
पर
खिल
रहे,केसर
टेसू
फूल|
आपस
में
घुल
मिल
गए
,बैर
भाव
को
भूल||
महकी
डाली
आम
की,मादक-मादक
भोर|
लिखती
पाती
प्रेम
की,होकर
मस्त
विभोर||
कान्हा
को
फुसला
रही,फागुन
प्रीत
बयार|
राधा
जी
को
भा
रही,स्नेहिल
रंग
फुहार||
चन्दा
ने
फैला
दिया,चाँदी
भरा
रूमाल|
सूरज
ने
बिखरा
दिया,पीला
,लाल
गुलाल||
क्यारी-क्यारी
दे
रही,महादेव
को
भंग|
फूल
और
तरकारियाँ
,बाँट
रही
हैं
रंग||
तन-मन
को
भरमा
रहे,होली
के
हुडदंग|
दरवाजे
पर
बज
रहे,ढ़ोला
फाग मृदंग||
होली
में
मत
भूलिये
,आँखें
हैं
अनमोल|
इक दूजे
पर
डालिये
,पुष्प
रंग
के
घोल||
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गुरुवार, 7 मार्च 2013
आज ये सबला नारी
(दो कुण्डलियाँ एक दोहा)
(1)
नारी अब अबला नहीं ,ना समझो कमजोर
सहती थी जब जुर्म ये ,चला गया वो दौर
चला गया वो दौर ,शबनम बनी है शोला
समझ न इसको फूल ,है बारूद का गोला
कामी, नीच , निकृष्ट, अधम पापी व्यभिचारी
कर देगी सब नष्ट , आज ये सबला नारी
(2)
फाँसी ही बस चाहिए ,दंड नहीं कुछ और
इन फंदो में गर्दने ,खींचों दूजा छोर
खींचो दूजा छोर ,मिटे ये बलात्कारी
नहीं सहेंगे और ,जान ले दुनिया सारी
ले कर में तलवार ,चली अब रानी झांसी
स्वयं करेगी न्याय ,अधम को देगी फांसी
(दोहा)
नारी से जीवन मिला,नारी से ही मान|
नारी से पैदा हुआ,कर उसका सम्मान||
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सोमवार, 4 मार्च 2013
(हास्य ग़ज़ल )ये सुरा तो बेवज़ह बदनाम है
(पिक्चर गूगल से साभार)
बेवड़े
के हाथ में अब ज़ाम
है
झिलमिलाई नालियों की शाम है
होश में तो रास्ता मैं रोकती
सामने अब हर जतन नाकाम है
मान जायेगा सुना था प्यार से
छूट देने का यही अंजाम है
नालियों में लेट कर वो सोचता
अब यहाँ आराम ही आराम है
भाग आई छोड़ कर माँ बाप को
बद गुमानी का यही ईनाम है
प्यार का है ये नशा कह्ता मुझे
ये सुरा तो बेवज़ह बदनाम है
बोलता था डॉक्टर हूँ मैं ब
ड़ा
बाद में निकला अदद हज्ज़ाम
है
ज़िन्दगी अब 'राज' ये कैसे कटे
रोज़ पीने पर छिड़े संग्राम है
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