यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 27 जनवरी 2013

कर्म किये जा (छंद त्रिभंगी)


(1)निश्शंक  जिए जा कर्म किये जा , ,फल की मत कर ,अभिलाषा 
भगवन सब जाने ,सब पहचाने , कृपा करेंगे   ,रख आशा 
कर मनन निरंतर ,हिय अभ्यंतर,तन मन सुख की ,परिभाषा
पर लोभ  बुरा हैक्षोभ  बुरा है,   पर मन  जीते   ,  मृदु  भाषा 

(2)शिव हरि  नाम भजो ,मद बिषय तजो ,जितेंद्रिय नाम,सुख पाओ 
भज  दुर्गे अम्बामाँ जगदम्बा ,मातु रूप  नौ  ,   तुम  ध्याओ 
हृदय से  सम्मान, शक्ति  सा मान , कर नारी  kaको  , दिख लाओ   
देवों   का प्यारा  ,मात्र   दुलारा  , जन   संस्कारी    ,हो जाओ  

*******************************************************************************

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

(संस्मरण) सफ़ेद चादर से ढका गुलमर्ग (गंडोला फेस 2)


हर मौसम में देखा गुलमर्ग  पर इस मौसम में देखा तो बस देखती ही रह गई कदम दर कदम आपको भी ले चलूंगी वहां उससे पहले कश्मीर यात्रा के कुछ ख़ास पलों और चित्रों  से  आपको रूबरू करना चाहती हूँ ।गुलमर्ग की सैर क्यूंकि हमें दिल्ली आने से दो दिन पहले करनी थी अतः उस जगह पर वापस जाना मुमकिन नहीं था इस लिए वहां पहले हो घूम कर आ गए वो जगह है 'कमान' इंडिया ,पाकिस्तान का बोर्डर जहां ट्रेडिंग होती है दोनों देशों के बीच में दो ख़ास दिन हैं जब इंडिया के ट्रक पाकिस्तान जाते हैं और वहां के इण्डिया आते हैं अर्थात व्यापार होता है यह सामान्य जनता के लिए वर्जित क्षेत्र है पूरा आर्मी से घिरा है हम भाग्य शाली रहे की उस दिन घूम आये क्यूंकि दो दिन बाद ही दोनों देशों के बीच वो व्यापार बंद हो गया रिश्ते खराब हो गए हमारे जवानो का सर काट कर ले गए वो कायर ,क्या मिला?रिश्ते खराब ,व्यापार बंद ,खैर वो दूसरा मुद्दा है फिलहाल आप चित्र देखिये -  
यहाँ पीछे वो ब्रिज है जहां से ट्रक अन्दर आते हैं ।

पाकिस्तान का एक ट्रक देखिये कितना सजाते हैं यहाँ आने से पहले ----
यहाँ कुछ दिन पहले अपना क्रिकेट कप्तान धोनी भी गया था वहां उसका चित्र देखा ---
यहाँ मेरे पति को भेंट स्वरुप हमारा फोटो देते हुए 
वहां की यादें दिल में लेकर वापिस आते हुए एक खूबसूरत व्यू पाइंट आया तो वहां भी कुछ वक़्त गुजारा देखिये वहां का चित्र 
यहाँ हमने गर्म गर्म कश्मीरी काहवा पिया ,पहली बार पिया बहुत अच्छा लगा ,पानी में केसर, बादाम ,चीनी मिलकर बनाते हैं ।तो ये कुछ ख़ास पल थे जो आपसे साझा किये अब आपको गुलमर्ग  लेकर चलती हूँ ।

गुलमर्ग में इतना भारी स्नो था की गाड़ियां भी बिना चेन के जा नहीं सकती थी गाड़ियों के पहियों पर ये चेन का बंदोबस्त पहली बार देख रही थी ,रास्ते से ही बूट ,गोगल इत्यादि किराए पर लिए ,और दोनों गाड़ियों के पहियों पर चेन चढ़ वाई देखिये चित्र ---
 चेन से पहिया बर्फ में नहीं फिसलता बहुत धीरे धीरे चढ़ाई चढ़ी जाती है ।किन्तु हमारी गाडी फिर भी दो बार संतुलन खोई ,अर्थात खुद ही राईट साइड की और घूम गई ,डर  भी लगा किन्तु ड्राइवर काफी अलर्ट था ,यहाँ में एक बात बता दूँ ऐसी बर्फ में सुबह सुबह चलना ठीक होता है यदि देर हो गई या दिन के दो बजे के बाद बर्फ शीशा बनने लगती है फिसलन बढ़ जाती है तो ये समस्या आती है जो हमारे साथ आई ।चलिए रस्ते की एक विडियो दिखा देती हूँ जिसमे चेन की आवाज लगातार सुनाई देगी ----


सुबह सुबह बच्चे टीवी  देखने में मस्त हैं 
शाम हो चली थी रात  को गुलमर्ग में ही रुकने को प्लान था सुबह गंडोला से ऊपर का नजारा देखना था ,गुलमर्ग में गाडी से बाहर निकलते ही पता लग गया की टेम्प्रेचर क्या होगा रात में वहां का टेम्प्रेचर माइनस 17 से 30 तक पंहुच जाता है ,कमरों तक पंहुचते पंहुचते ही भरी बर्फ से गुजरना पड़ा ,रात तो  ठीक से कट गई क्यूंकि रूम में दो तीन हीटर (बिजली से चलने वाला भी कैरो  हीटर भी जो कैरोसिन से जलता है ) थे पानी के पाइप सब जमे हुए थे एक बड़े बर्तन में  पानी पिघलाने के लिए कैरो हीटर पर रख दिए और इस्तमाल करते रहे देखिये चित्र ---
अब देखिये रूम से बाहर का नजारा 
कहीं कही हमारी कमर तक बर्फ थी कहीं उससे भी ज्यादा बाहर से कोटेज आधी ढक  गई थी 
अब हम गंडोला की तरफ चल दिए --देखा वहां दो तरह की ट्राली ऊपर जाती हैं एक तो शीशे की बंद और दूसरी खुली हुई ,जिसे स्नो स्कींग करने वाले यूज करते हैं अपने शू और स्कींग का सामान ले जाते हैं और फेस वन में जहां स्नो सपोर्ट होते हैं तक जाते हैं ,उससे ऊपर फेस 2 है जहां अद्दभुत नज़ारे हैं ऐसा आभास होता है की तुम चाँद पर आ गए हो इस मौसम में तो कम से कम यही आभास होता है अब देखिये चित्र वहां सूरज की गर्मी में भी माइनस  8 डिग्री टेम्प्रेचर था रात  में माइनस 30 से ऊपर जाता है ।
ट्राली में बैठते हुए --------
ऊपर से लिया हुआ चित्र ---
यहाँ हम फेस 2 पर उतर गए ---चित्र में बेटा ,बहु ,बेटी के साथ मैं 



           हब्बी के साथ -------

           बेटी के साथ ----
एक विडियो भी हो जाए ------(बेटे राजीव के साथ )--
इस तरह हमने पर्वतों की चोटियों पर मस्ती की उनकी गोदी में खेले उसकी श्वेत मखमली आँचल में लोट पोट  हुए उन चांदी सी  यादों को दिल में बसाकर वापस गुलमर्ग लौटे तो बच्चे वहां हो रहे स्नो स्पोर्ट्स में भाग लेने के लिए उतावले हो गए कई में मैंने भी हाथ आजमाया सोचा चलती जाती दुनिया है फिर आना हो या ना हो सब अनुभव बटोरने चाहिए देखिये वहां क्या क्या किया ----

यहाँ खूब मजे करके हमें श्रीनगर वापस आना था दूसरी रात गुलमर्ग में रहने का बंदोबस्त था किन्तु सभी ने उस रात रुकने को मना कर दिया और टाइम रहते वापस आ गए किन्तु वहां की यादें आज भी दिल में रोमांच  भर देती हैं आशा करती हूँ मेरा यह संस्मरण आप सब को पसंद आया होगा शुभ विदा ।
***********************************************************************************************

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के


ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना  जायेंगे 
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना  पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी  के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
बारूद  के ज्वाला मुखी  को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम 
भाई कहकर  छल से पीठ पर करते वार हो
तुम कायर तुम नपुंसक   बुद्धि से लाचार हो
मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं 
माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं 
मूषक स्वयं शिकारी समझे सिंघों के शीर्ष चुराके  
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
 देश के बच्चे बच्चे को तुमने अब उकसाया है 
राम अर्जुन भगत सिंह ने अब गांडीव उठाया है 
मत लो परीक्षा बार बार तुम देश के रखवालो की 
बांच लो किताब फिर से आजादी के मतवालों की 
वही  लहू है वही  युवा हैं वही वतन की है  माटी 
वही जिगर है वही हवा है वही जंग  की परिपाटी 
 ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के
**********************************************
(सोच रही थी तीसरी पोस्ट अपने कश्मीर वृतांत की अगली कड़ी (गुलमर्ग गंडोला )लिखूंगी ,किन्तु आज दिल ने ये सब लिखने पर मजबूर किया 
ये घटना हमारी यात्रा के दूसरे  ही दिन घट  गई जिस जिस जगह हम घूम आये थे वो सब रस्ते सिविलियन के लिए सील कर दिए गए ,अगली पोस्ट में यात्रा वृतांत की अंतिम कड़ी लिखूंगी )

रविवार, 13 जनवरी 2013

कश्मीर के भारी बर्फ में ट्रेकिंग का मजा

कश्मीर के भारी बर्फ में ट्रेकिंग का मजा

आज सुबह सब को जल्दी जगा  दिया गया ट्रेकिंग जो करना था बड़ों और बच्चों में पूर्ण उत्साह था जंगल का एक ऊबड़  खाबड़ रास्ता अच्छी  खासी चढ़ाई कहीं कहीं कुछ बर्फीले पानी के झरने कहीं कोई नदी ,तीन चार फीट बर्फ में दबा रास्ता कहीं कहीं गहराई अधिक होने से बर्फ का अनुमान नहीं कितने फीट होगी ,उसमे ट्रेकिंग करने की योजना बनी सेफ्टी का सब सामान हमारे पास  था पूर्णतः सहायता साथ थी इस लिए बच्चों को साथ ले जाने में कोई दिक्कत नहीं आई क्यूँ की दो बच्चे जो साढ़े तीन साल के हैं उन्हें तो नीचे भी नहीं खड़ा कर सकते थे उन्हें कंधों पर ही ले जाना पड़ा ,भालू और चीते उस जंगल में कभी भी दिखाई दे सकते थे पर डर  नहीं था सिक्योरिटी/ गनमेन  साथ थे ।हमे कुछ सामान दिया गया जैसे ,स्नो गोगल ,स्नो बूट ,छड़ी ग्लब्स इत्यादि मेरे साइज के बूट नहीं मिले 5 न इस लिए मेरे लिए मुश्किल हुआ पर बाद में सबने बूट पहनने से मना  कर दिया क्यूंकि सेना के बूट बहुत भारी होते हैं हम जैसे पहनकर एक कदम भी नहीं चल सकते दो बन्दों ने रास्ते में खाने पीने का सामान भी लिया जंगल में प्रवेश तक गाड़ियों ने छोड़ दिया और फिर हुई हमारी ट्रेकिंग शुरू ,सुबह के नो बजे थे सूरज अच्छे से निकला था अर्थात हमारे भाग्य से मौसम बहुत अच्छा था ,ख़ुशी और उत्साह में ट्रेकिंग शुरू की देखिये चित्र ----- 

आगे रास्ता और कठिन होता गया  --देखिये झरने कैसे जमे हुए हैं 
बेटे के साथ मैं 

नीचे देखिये जमी हुई नदी जिसे पार करना था ----इसे पार  करते हुए जूतों में बर्फीला पानी भी भर गया था 
इसके ऊपर एक पतला सा लकड़ी का फट्टा पड़ा था उस पर बर्फ के ऊपर से चलना  था ---देखिये चित्र ---
बच्चे कितने खुश हैं 
यहाँ इतनी ज्यादा बर्फ थी की बैठ कर फिर सहायता से ही उठा गया ---
यहाँ मेरा धूप  का चश्मा भी गिर गया था जो लौट के आते हुए वहां के ईमानदार लोकल निवासी जो सेना  में पोटर का काम करते हैं गर्मियों में भेडें  चराते हैं  ने दे दिया ।
देखिये नन्ही इनिका बहुत दूर तक तो नानू के काँधे पर ही गई 
--जो हमारा टारगेट था वो अभी एक घंटे की दूरी पर था वहां जा तो सकते थे पर लौटते हुए खतरा था क्यूंकि जितनी देर होती बर्फ जम  कर शीशा बन जाती है अतः ढलान पर उतरना बहुत कठिन  था  है इसी लिए आधे रास्ते में ही पड़ाव डाला गया ,सभी के जूतों में पानी भरा था उंगलियाँ काटने जैसी हो रही थी अतः उपचार की एक दम जरूरत थी जो हमें मिल गया ---
नदी जम  चुकी थी पर पैर रखना मजबूरी थी कांच टूटते ही पानी भर गया जूतों में 

देखिये जहां जूतों में पानी भरा ----उपचार हो रहा है 
उपचार करते हुए गर्म पानी में नमक चाय का पानी ,केसर मिला कर तब में डाल  कर पैर 15 से20 मिनट डुबोए  और वहां गर्म गर्म चाय और सूजी का ड्राई फ्रूट्स के साथ हलुए का मजा लिया --- 
एक ख़ास बात और थी हमें ऊपर जाकर शूटिंग  का मजा भी लेना पर किन्तु बीच में पड़ाव करने के कारण शूटिंग का बन्दों बस्त  वहीँ कर दिया गया सभी ने ट्राई  किया मेरे दो राउंड सफल हुए।

देखी चित्र --- 
वापस लौटने की जल्दी थी पर मैं समझ नहीं प् रही थी की इतनी चिंता वापस लौटने की वहां के लोग क्यूँ कर रहे हैं ,जो मैं जल्दी ही समझ गई थोड़ी थोड़ी बर्फ शीशा बन चुकी थी ना छड़ी सहायता कर रही थी ना जूते सभी एक दो बार लुढ़क चुके थे ,मैं कितनी बार लुढकी बताने में भी शर्म आएगी ,मुझे तो संभालने वाले भी लुढ़क रहे थे फोटो ग्राफी भूल गए थे आधे घंटे  का सफ़र डेड घंटे  में किया वापस आते आते नदी में पानी भी अधिक हो गया उसके ऊपर के फट्टे पर बर्फ शीशा बन गई उस पर चलना ना मुमकिन था अतः घुटनों तक पानी से निकलना   पड़ा ,पैर कहाँ हैं पता ही नहीं था शाम होने लगी थी खतरा ही खतरा था ऊपर से नीचे तक 
वो ऐसी जगह थी जहां दुश्मनों की और से कभी भी शेलिंग हो जाती है हमारे आने के दो दिन बाद ही सुनी गई ,कुल मिलाकर एक थ्रिलिंग ट्रेकिंग को हमने अंजाम दिया ,पर सबसे बड़ा अनुभव ये हुआ की हमें पता चला जब हम सर्दियों में ऐ सी रूम में नर्म नर्म रिजाईयों  में दुबके बैठे होते हैं हमारी सेना किन परिथितियों से गुजर रही होती है हम सपने में भी नहीं सोचते बर्फ से कभी कभी उन जान बाजों के पैर इतने खराब हो जातें हैं की ला इलाज होने के कारण पैर तक काटने पड़  जाते हैं ,बर्फ में सूरज की रौशनी की चमक से आँखे खराब हो जाती हैं ।
यह सब देखते हुए एक कविता दिल में जन्म ले रही थी उसका भी मजा लीजिये --

उड़ेल दिए क्या नमक के बोरे ,या चाँदी  की किरचें  बिछाई 
लटके यहाँ- वहां  रुई के गोले  क्या  बादलों   की फटी रजाई 
मति मेरी  देख- देख चकराई |
डाल- डाल पर  जड़े कुदरत ने जैसे धवल नगीने चुन- चुन कर  
लगता कभी- कभी  जैसे धुन रहे  रूई  को अम्बर में धुनकर  
 नग्न खड़े दरख्तों को किसने श्वेत- श्वेत पौशाकें  पहनाई 
 मति मेरी  देख देख चकराई |
सुन्न कम्पित  नीर दूधिया संग लेकर बहती  झेलम की धारा 
तटों पर श्वेत आइस क्रीम सी बिखरी शून्य हुआ तल का पारा   
 जाने किसने झीलों को पारदर्शी  कांच की चुनरी   उढाई   
मति  मेरी  देख- देख चकराई 
सड़कें धुली- धुली  क्षीर से  हिम रजत से पर्वतों  के ढके  बदन  
उज्जवल ,धवल चांदी उबटन  से लिपटे हों  जैसे  उनके   वदन  
किरणों   ने मस्तक जो चूमा उनका   रवि की आँखें चौंधियाई 
मति मेरी देख देख चकराई 
अब यह पोस्ट यहीं बंद करती हूँ अगली पोस्ट पर मैं आप सब  को चाँद पर ले जाऊँगी हाहाहा सच में ऐसा ही अनुभव हुआ गुलमर्ग से ऊपर गंडोला फेस 2 में जाकर !!!!(चित्र बहुत हैं काश सब दिखा पाती ,कुछ सेंसर्ड भी हैं )   
*************************************************************************