थर्रा गये  मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर   
जब  कर्ण  में पड़ी  मासूम की चीत्कार 
सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते  
बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग  की दीवार 
रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु  समंदर 
दिलों में  नफरतों के नाग रहे फुफकार
उतर  आये   दैत्य देवों  की भूमि पर 
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार  
 दर्द के  अलाव में  जल  रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार
        देख  खतरे में नारियों  का अस्तित्वसर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार
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