कुछ कह मुकरी 
(१)
जब से साल सोलहवां आया 
मन ही मन ये दिल भरमाया 
मेरी आँखों में वो लगे हंसने 
ऐ सखी साजन! ना सखी सपने 
(२)
पलकें मेरी झुक-झुक जाएँ 
फिर चुपके  से मुझे बुलाये 
वदन श्रृंगार उसी को अर्पण 
ऐ सखी साजन ! ना सखी दर्पण 
(३)
सगरी नगरी जब सो जाए 
दबे पाँव अँधेरे में आये 
डरे कहीं हो जाए ना भोर 
ऐ सखी साजन !ना सखी चोर 
(४)
प्रेम पाश में मुझे फंसाए 
रेशमी बांहों में वो झुलाए 
धीरे धीरे मुझे सुलाए 
ऐ सखी दूल्हा !ना सखी झूला 
(५)
तीनो पहर वो मुझे बुलाये 
बिन उसके भी रहा ना जाए 
अपनी अगन में मुझे तपाये 
ऐ सखी दूल्हा ! ना सखी चूल्हा 
(६)
रात चांदनी पुहुप महकाये
श्वेत किरणों का जाल बिछाए 
सम्मोहन में मुझे फंसाए 
ऐ सखी चंदा !ना सखी रजनी गंधा
(७)
जब भी मेरे पास में आये 
मेरा आँचल उड़ -उड़ जाए 
मेरे तन-मन को उलझाए 
ऐ सखी पवन !! ना बुद्धू, साजन 
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