यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

सोलहवां सावन

सोलहवां सावन
न जाने कब सोलहवां सावन आया
रिम झिम बरसे बादल
हाथों की चूड़ी लगी कसने
औछा पड़ने लगा आँचल !
        कब गुडिया लगी चिढाने
        ओर गुड्डे लगे मन को भाने
        दादी के किस्से फीके  पड़ गए  
        प्रेम कहानी लगी रिझाने !
कब आँखों से नींदे लुट गई
ओर सपनो ने घर बसाया
लोरी का अब चला न जादू
जाने क्यों ये मन बौराया !
         सयाने हुए कब  संगी-साथी
        ओर मेरी बचपन की सखियाँ
         छूटी लुकाछिपी आँख मिचौली
        भाने लगी कानों की बतियाँ !
फिर एसा वो दिन भी आया
माँ का आँगन हुआ पराया
वो लम्हे वो कल की बातें
बन गई मन की मीठी यादें !!
        

रविवार, 17 अक्टूबर 2010

aaj ke raavan

आज के दम्भी रावण करदे इतना अहसान
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान ,
नहीं तो तेरा कल उन्ही पे चल के आएगा
फिर से इतिहास उसी सांचे में ढल जायेगा !
                          तब कौन सुनेगा तेरे दिल की जुबान
                          तू  छोड़ नहीं जाना अपने क़दमों के निशान!
तेरे अपने तेरी मंजिल का पता पूछेंगे
उनपे चलने के लिए तेरे कदमो के निशान खोजेंगे
तू अपने दुष्कर्मो को छिपायेगा कंहा
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान !
                         वो कोई ओर थे जो कल भी पूजे जायेंगे
                         जिनके पदचिन्ह सही रास्ता दिखायेंगे
जिनकी याद में आज भी नतमस्तक है जहाँ
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान !
                         वो आजादी के लिए फिरते  थे दरबदर
                          तुम आज पखेरू के पिंजरों से सजाते हो अपना घर 
तू समझा ही कँहा अब तक आजादी की जुबान
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान !
                      उनके बलिदानों का तूने बनाया है उपहास
                      तार तार कर डाला है प्रकर्ति का लिबास
उज्जवल भविष्य अब तूने छोड़ा है कँहा
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान !
                    जिंदगी को तूने इक अभिशाप बना डाला
                    अमृत दिया था प्रभु ने उसमे विष मिला डाला
चहुँ ओर फैल रहा है आतंक का धुआं
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान !
                    तेरे कदमो पे चल के वो क्या पायेंगे
                    बहेतर है वो खुद नया जहाँ बनायंगे
कोन जाने फिर से हो रामराज्य वहां
तू छोड़ नहीं जाना अपने कदमो के निशान !!


सबको विजय दशमी की शुभ कामनाएं

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

परिणय डोरी


हिय कँवल कब तक खिलेंगे लोचन की बंद तिजोरी में


तू ले चल मुझको संग पिया अब बाँध परिणय डोरी में!!




सुध बुध भूला मन थके नयन बाँट जोहेते राहों में


तू ले चल मुझको डोली में सम्मोहन की बांहों में !!




पायल छेडे कंगना छेडे सखियाँ छेडे बरजोरी में


अंगीकार करो सर्वस्व समर्पण क्या रखा है चोरी में



प्रीत करे और मर्म ना जाने क्या बात है चाँद चकोरी में


तू ले चल मुझको संग पिया अब बाँध परिणय डोरी में !!