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गुरुवार, 27 मई 2010

ह्रदय के उद्द्गार

ह्रदय   के उद्द्गार 
माना की यहाँ जलजले बेखोफ चले आते हैं
मैं रोक नहीं सकती इन ह्रदय के उद्द्गारों को .
        जो मैं ऐसा जानती ,
       एक लहर समापन कर देगी मैं रेत का महल बनाती क्यूँ
       साहिल भी  किनारा कर लेगा मैं कागज की नाव चलातीक्यूँ .
जो मैं ऐसा जानती ,
        स्वर्ण रथ पर खड़ा लुटेरा चुप चाप  चला  आएगा 
        मैं स्वप्न दिए यूँ चोखट पे सजाती क्यूँ  
एक लहर समापन कर देगी मैं रेत का महल बनाती क्यूँ .
    जो मैं ऐसा जानती ,
एक बदली धूप चुरा लेगी मैं भीगे केश सुखाती क्यूँ
मौसम भी बगावत कर देगा मैं सर से चुनरी सरकाती क्यूँ
     एक लहर समापन कर देगी मैं रेत का महल बनाती क्यूँ !!

Rain dros on flowers ,which i like very much.

बुधवार, 26 मई 2010

why not thoughts come seeings this view.

मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!

मन का दीप जलाती हूँ



मैं अन्यमनस्क मन मंथन कर


भव्य भाव सजाती हूँ


अन्तरंग अंचल की परिक्रमा कर


हिय को किल्लोल सिखाती हूँ


मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!



रक्त धमनियों का लालित्य


हरदयस्पंदन का उत्कर्ष


चिंतन मनन के बिंदु पर


व्यग्र व्याकुल चंचल मन


मैं एकाकी अनुरागी


अभिलाषाओं का हार बनाती हूँ


मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!



कोंधती दामिनी द्रग की बैरी


मेघों की झूठी गर्जना


कर्ण पटल को छु कर मेरे


पहुंचाती है वेदना


कुछ क्षण चुपके से चुराकर


मैं स्वप्नों की हाट लगाती हूँ


मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!

रविवार, 23 मई 2010

मानसून

मानसून की पहली बारिश
प्रकर्ति ने सर झुका लिया
बूँद जो उतरी धरा की और
जलज ने आँचल फैला दिया .
मानसून

शनिवार, 22 मई 2010

orkut - Promote

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मुझको दुनिया में आने दो

मैं  तेरी  धरा का बीज हूँ माँ
मुझको पौधा बन जाने दो
नहीं खोट कोई मुझमे ऐसा 
मुझको दुनिया में आने दो
.        
      मैं तेरे मातृत्व का सन्मान    
      नहीं कोई शगल का परिणाम
      मेरा अस्तित्व तेरा दर्प है
      मुझमे निहित सारा संसार .


गहन तरु की छाया में 
लघु अंकुर को पनपने दो  
      नहीं खोट कोई मुझमे ऐसा 
      मुझको दुनिया में आने दो .


जंगल उपवन खलियानों में
हर नस्ल के पुहुप महकते हैं
स्वछंद परिंदों के नीड़ो में
दोनों ही लिंग चहकते हैं .
      प्रकर्ति के इस समन्वय का
      उच्छेदन मत हो जाने दो
नहीं खोट कोई मुझमे एसा
मुझको दुनिया में आने दो .      


                     समाज की घ्रणित चालों से माँ
                     तुझको ही लड़ना होगा
                      नारी अस्तित्व के कंटक का
                     मूलोच्छेदन करना होगा .
 तेरे ढूध पर  मेरा भी हक है
दुनिया को ये समझाने दो
नहीं खोट कोई मुझमे ऐसा 
मुझको दुनिया में आने दो ..    




मुझको दुनिया में आने दो