घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल|
दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||
बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|
बेटी से बेटे
मिलें ,बेटा आँखें खोल||
घर की रौनक बेटियाँ,दो-दो घर की लाज|
उनको ही आहत करे ,कैसा कुटिल समाज||
खाली
कमरा रह
गया,अब बिटिया के बाद|
चौखट
भी है सीलती
,जब-जब आये याद||
बेटों को सब मानते ,करते उन्नत
भाल|
बेटी को अवसर मिलें, छूले गगन विशाल||
बेटी को काँटा समझ ,मत करना तू भूल|
बेटी भी बनकर खिले, उस डाली का फूल||
घटती जाएं बेटियाँ
, बढ़ते जाएं लाल|
बिगड़ेगा जो संतुलन,बदतर होगा हाल||
पीढ़ी बेटों से चले , बेटों से ही वंश|
नहीँ रहेंगी बेटियाँ ,कहाँ रहेगा अंश||
कैसे अब आँगन फले, कहाँ रहेगा अंश|
जीवन अब कैसे चले,किस्मत झेले दंश||
पीढ़ी अब कैसे चले ,कहाँ बढ़ेगी बेल|
यूँ कन्या को मार के,रचे अंत के खेल|| ********************************
पीढ़ी बेटों से चले , बेटों से ही वंश|
जवाब देंहटाएंनहीँ रहेंगी बेटियाँ ,कहाँ रहेगा अंश||
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
आप भी पधारें
ये रिश्ते ...
घटती जाएं बेटियाँ , बढ़ते जाएं लाल|
जवाब देंहटाएंबिगड़ेगा जो संतुलन,बदतर होगा हाल||
बहुत सुन्दर
bahut hi sundar aur sarthak prastuti ...खाली कमरा रह गया,अब बिटिया के बाद|
जवाब देंहटाएंचौखट भी है सीलती ,जब-जब आये याद||
--ssneh
mere blog par aapka bhi swagat hai
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_26.html
घटती जाएं बेटियाँ , बढ़ते जाएं लाल|
जवाब देंहटाएंबिगड़ेगा जो संतुलन,बदतर होगा हाल||,,,
बहुत उम्दा प्रेरक दोहे,,,
RECENT POST: पिता.
सारे दोहे एक दम सटीक हैं | लाजवाब दोहावली | मैं आपका कायल हो गया | आभार |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
राजेश कुमारी जी बहुत सटीक दोहे लिखे हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दीदी |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
बहुत ही भावनात्मक कविता लिखी है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत ही समीचीन और मर्मस्पर्शी कविता है। राजेश कुमारि जी मैने आज पह्ली बार आपको पढा है और आपका कायल हो गया।इतनी सुन्दर कविता के लिये बधाई………
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहे, बेटियां तो खुशियों का खजाना होती है.
जवाब देंहटाएंनीरज 'नीर'
मेरी नयी कविता
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): शिकायत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और कमाल के दोहे।
मेरी नयी कविताएँ
जवाब देंहटाएंKAVYA SUDHA (काव्य सुधा): शिकायत
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): जमी हुई नदी
बहुत ही भावनात्मक सुन्दर और सार्थक दोहे.........
जवाब देंहटाएंsundar rachna "beti to anmol hai, chup kyon ho kuch bol,jab beti hi nahi,kya duniya hogi,beta tu ab bol"
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों का संगम ...
जवाब देंहटाएंपीढ़ी अब कैसे चले ,कहाँ बढ़ेगी बेल|
जवाब देंहटाएंयूँ कन्या को मार के,रचे अंत के खेल||
रचना बहुत ही सार्थक है , बहुत बढ़िया ...
बेटियों की कीमत जो समाज नहीं जानता वह पछताता है..सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावनात्मक
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक दोहे....
जवाब देंहटाएंबेटियाँ पल्लवित रहें, विश्व पल्लवित रहेगा। बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंपीढ़ी बेटों से चले , बेटों से ही वंश|
जवाब देंहटाएंनहीँ रहेंगी बेटियाँ ,कहाँ रहेगा अंश|
बेटियां जीवन होती है जिस घर में बेटियां नहीं होती है
वह घर घर नहीं होता -----बहुत सार्थक लिखा है आपने
बधाई
आदरणीय ज्योति खरे जी मेरे ब्लॉग से जुड़ने पर साभार आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंपीढ़ी बेटों से चले , बेटों से ही वंश|
जवाब देंहटाएंनहीँ रहेंगी बेटियाँ ,कहाँ रहेगा अंश||
कैसे अब आँगन फले, कहाँ रहेगा अंश|
जीवन अब कैसे चले,किस्मत झेले दंश||
बहुत सुन्दर .उम्दा पंक्तियाँ .
बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?