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मंगलवार, 31 जुलाई 2012

रक्षा बंधन


इक जनयत्री एक ही मूल 
एक डाल के हम दो फूल 
भेज के मुझको पी के घर 
भैय्या  देख जाना भूल 
भले तेरी बहना रहती परदेश 
भूल पाती अपना देश
जब जब नेट पे देखूं तेरा चेहरा 
वही है रक्षा बंधन मेरा 
वहीँ से तेरी बलाएँ लूंगी 
प्यारी सी राखी भेजूंगी 
मेल तू खोल के देखना 
राखी में मुस्काएगी बहना 
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मंगलवार, 24 जुलाई 2012

सावन के महीने में


(रूप घनाक्षरी )
पड़े हैं झूले सावन के झूमे तरु की डाल,गीत सुनाएँ गोपियाँ पेंग बढाए गोपाल ||
ओढ़े मेघ चुनरिया कभी धानी कभी लाल,श्रृंगार कर सुहागिनें जाती हैं ससुराल ||
भाद्रपद कृष्ण तृतीया को आता ये त्यौहार,कजली गावें लडकियाँ झूलन की बहार||
बूढ़ी तीज, वृद्ध तृतीया दोनों एक ही जान,वधुवें झूला झूलती बायना करी दान|| 
(कुण्डलियाँ छंद )
झूले तीजों के सजे ,देव शिवा का धाम 
जन-जन के मुख पे रहे,शिव शंकर का नाम  
शिवशंकर का नाम ,जपें उपहार सजावें
गावें कजरी गीत ,प्रिय घन नेह बरसावे
कर सोलह श्रृंगार ,मगन हो सुधबुध भूले 
सजन बढाये पेंग ,सजनी प्यार से झूले ||


बुधवार, 18 जुलाई 2012

तांका ५,७,५,७.७.(नयन )


()
झुके नयन 
लाज का वो पहरा 
दोनों खामोश 
बोलती धड़कने 
अनबूझे सवाल 
()
भीगे नयन 
ग़मों की बरसात 
गीला तकिया 
कैसे कटे रतिया 
मेरे मन बसिया 
()
मिले नयन 
नेह की अभिव्यक्ति 
मौन सन्देश 
पहली मुलाकात 
दिल में बसी याद 
()
बुझे नयन 
बेरंग जिंदगानी 
शून्य निगाहें 
लेकिन स्वाभिमानी 
एक सच्ची कहानी 
()
लाल नयन 
क्रोधाग्नि में संतप्त 
खौलता खून 
खुला जब त्रिनेत्र 
भस्म हुआ सम्पूर्ण 
()
दिव्य नयन 
आलौकिक नजर 
श्री भगवन 
कमल नयनम
शत शत नमन 
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सोमवार, 16 जुलाई 2012

शिवरात्री की शुभकामनाएं

मेरे सभी मित्रों को शिवरात्री की शुभकामनाएं 
 आज  शिवरात्री है गाँव में  सावन के झूले पड़े हैं बस गीत सुनना बाकी है चलो मैं सुना देती हूँ एक ऐसा लोक गीत जो शायद मेरे जन्म से पहला है ओर मेरे बाद भी चलता रहे गा|
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
पार्वती ने बोई हरी -हरी मेहँदी (२)
शिव शंकर जी भांग उगाय ,बुंदिया पड़ने लगी
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
पार्वती ने कूटी हरी- हरी मेंहदी (२)
शिवशंकर ने घोट लियो भांग ,बुंदिया पड़ने लगी
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
पार्वती की रच गई हरी -हरी मेंहदी (२)
शिवशंकर को चढ़ गई भांग ,बुंदिया पड़ने लगी 
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
पार्वती जी नहाई हल्दी चन्दन  के लेप से (२)
शिवशंकर भभूत लगाय ,बुंदिया पड़ने लगी 
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
पार्वती ने पहनी मुतियन की माला (२)
भोले शंकर ने नाग लिपटाय,बुंदिया पड़ने लगी 
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी
पार्वती ने डाले रेशम के झूले (२)
शिवशंकर जी पेंग बढ़ाय ,बुंदिया पड़ने लगी 
शिव शंकर चले कैलास बुंदिया पड़ने लगी||
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गुरुवार, 12 जुलाई 2012

झेलम के किनारे



·         कल की वो शाम 
जब हम हाथों में हाथ लेकर 
बैठे थे उस शिला खंड पर 
सामने झेलम नदी अपने 
पूर्ण उफान के साथ उन्मादित 
पत्थरों को छलान्गती 
बलखाती ,गुनगुनाती बह रही थी अपने 
तीव्र प्रवाह के साथ 
कल्पनाओं में मानो कोई 
अल्हड योवना भाग रही है 
अपनी प्रीत को बांहों में जकड़ने 
एतिहासिक और भोगोलिक 
कथन में जा रही है पडोसी 
देश पाकिस्तान में 
उसे कोई सरहद कोई 
सीमा रोक नहीं सकती 
हम यह मनमोहक द्रश्य 
निगाहों में समाते जा रहे थे 
जुबान खामोश थी पर दिल की धड़कने 
स्मृति पटल पर अपनी कहानी 
लिख रही थी इस सलोने 
वक़्त को दिल की तिजोरी में बंद 
कर रही थी 
मेघो ने भी अपनी 
नन्ही नन्ही बूंदों से अपनी 
ख़ुशी का इजहार किया 
पास में जलाई हुई लकड़ियों ने 
मानो मेघों से कुछ कहा 
और वर्षा रुक गई 
हाथो में गिलास रुत को 
और मादक और तिलस्मी बना 
रहे थे मानो जंगल में 
खुश होकर मयूर नृत्य 
कर रहे हों 
ऐसे मन म्रदंग
बज रहे थे धीमे धीमे 
और झेलम साथ में अपना सुर मिला रही थी 
वो वक़्त तो कहने को क्षणिक था 
पर हम दोनों के दिलों 
में हमेशा के लिए घर बना चुका था
वो जंगल में मंगल 
था या कोई दिवा स्वप्न 
जहां से हम एक दूजे का हाथ थामे लौट रहे थे !
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मंगलवार, 10 जुलाई 2012

सिलेंडरों की रेल (दोहे)


निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ  
रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1) 
तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार  
      गोदामों में सड़ रहे,    गेहूं के अम्बार     (2)
शून्य में देखते  नयन  , पूछ रहे हैं  बात 
प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात  (3)
ह्रदय क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय
हलधर का अपमान कर,अन्न जल में बहाय (4)   
शासन  की सौगात  हो  , या  किस्मत की हार 
निर्धन को तो  झेलनी , ये जीवन   की मार (5)
रंक  का चूल्हा न  जले,ना लकड़ी ना तेल 
मंत्रियों तक दौड रही,सिलेंडरों की रेल (6)
दिन  हैं  भ्रष्टाचार के,सत्य  रहा है   काँप 
मंहगाई की  धुन पे   ,नाच   रहे हैं सांप  (7)
बिगड़ी सूरत देश की  ,किस  के  जल से धोय 
गंगा भी मैली करी ,  उपाय बचा  कोय (8)
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