(रूप घनाक्षरी )
पड़े हैं झूले सावन के झूमे तरु की डाल,गीत सुनाएँ गोपियाँ पेंग बढाए गोपाल ||
ओढ़े मेघ चुनरिया कभी धानी कभी लाल,श्रृंगार कर सुहागिनें जाती हैं ससुराल ||
भाद्रपद कृष्ण तृतीया को आता ये त्यौहार,कजली गावें लडकियाँ झूलन की बहार||
बूढ़ी तीज, वृद्ध तृतीया दोनों एक ही जान,वधुवें झूला झूलती बायना करी दान||
(कुण्डलियाँ छंद )
झूले तीजों के सजे ,देव शिवा का धाम
जन-जन के मुख पे रहे,शिव शंकर का नाम
शिवशंकर का नाम ,जपें उपहार सजावें
गावें कजरी गीत ,प्रिय घन नेह बरसावे
कर सोलह श्रृंगार ,मगन हो सुध- बुध भूले
सजन बढाये पेंग ,सजनी प्यार से झूले ||
bahut sundar rachanaayen...!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाव संयोजन
जवाब देंहटाएंतीज पर मन भावन रचना !
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही मनभावन ... तीज की मस्त बहार ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सावनमयी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंतीज पर मन भावन रचना !बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसुन्दर सावन गीत . शायद इसी से रिम झिम सावन आ जाए .
जवाब देंहटाएंवाह...!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, आनन्द आ गया सावन में...
सावन को जीवंत कर दिया...आपने...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, बधाई.
जवाब देंहटाएंआदरणीया राजेश कुमारी जी मन भावन श्रावणी रचना ..मन हरा तारो ताजा ..सुन्दर प्रणय भाव
जवाब देंहटाएंजय श्री राधे
भ्रमर ५
Very beautiful and pleasing creation.
जवाब देंहटाएंकविता का सम्पूर्ण श्रृंगार....
जवाब देंहटाएंपूरा माहौल ही श्रृंगारमय हो गया..
आभार
.
जवाब देंहटाएंक्या बात है !
बहुत सरस सावनी रचनाएं हैं …
कुंडली कमाल है !
आभार !
सावन अपने सर्वोच्च रंग में ... यहीं है।
जवाब देंहटाएंbula kr aapne sawan,mausm suhana ke dia,bebso ki jindgi me rang sare bhar dia. jivan kr dia sawan ko
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