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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

कैसी आग लगाई है


तेरे ही दो बेटो ने माँ कैसी आग लगाईं है 
एक जलाता मंदिर दूजे ने मस्जिद तुडवाई है ||

कैसी आँधी जहर भरी इस मुल्क के ऊपर छाई है 
देखो दौलत पाने को उसने बन्दूक उठाई  है ||

पोंछ  दिया सिन्दूर दुल्हन का देखो जुल्मकारों ने 
डूबी लाल लहू में जो  अब रोती ये शहनाई है  ||

अबतक  नाप सका ना कोई आंसू उनकी आँखों के 
 पूछे कौन समंदर से तुझमे कितनी गहराई है || 
                                                                                                                                                                       
कैसे स्वप्न संजोये कोई अब अपनी खुशहाली के
मेरे भारत की सूरत को नोच रही मंहगाई है || 

बेटों से ही  वंश है चलता कैसी उनकी सोच बनी
बेटी होने की खब्र पर उसने वो भ्रूण  गिराई है || 

 आज देश का जन जन वोट के वक़्त सोच रहा   
एक तरफ है गहरा कूआँ दूजे  बाजू खाई है ||
 ******   














18 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया...........

    गहन अभिव्यक्ति राजेश जी.

    सादर
    अनु

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  2. समसामयिक रचना .... जाति धर्म सब स्वार्थ में निहित हो गया है ...

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. पोंछ दिया सिन्दूर दुल्हन का देखो जुल्मकारों ने
    डूबी लाल लहू में जो अब रोती ये शहनाई है ||

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई आपको !

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  5. माँ तो सबकी होती है,विदेशी होया हिन्दुस्तानी
    लहू सभी का एक रंग है, क्यूँ बन जाता है पानी,

    एक देश में शीश चढाये,दूजा लूट रहा है जान
    बेटा बनकर ही करते है,भारत माँ का अपमान,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  6. पोंछ दिया सिन्दूर दुल्हन का देखो जुल्मकारों ने
    डूबी लाल लहू में जो अब रोती ये शहनाई है ||...बहुत सुन्दर भाव ....विचारणीय पोस्ट..

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  7. हालात चिंताज़नक हैं . फिर भी आशा की एक किरण हमेशा विश्वास दिलाती रहती है .

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  8. पोंछ दिया सिन्दूर दुल्हन का देखो जुल्मकारों ने
    डूबी लाल लहू में जो अब रोती ये शहनाई है ||
    भाव मय करते शब्‍दों का संगम ... आभार

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  9. अबतक नाप सका ना कोई आंसू उनकी आँखों के
    पूछे कौन समंदर से तुझमे कितनी गहराई है ||
    bahut hi marmik hai

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  10. समय की पुकार .गहरे एहसास ....
    शुभकामनाएँ!

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  11. गहरे भाव लिए मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..

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  12. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेग । धन्यवाद।

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  13. कटु सत्य ....देश की दुर्दशा का बयान सटीक शब्दों में
    सोचना होगा हर किसी को

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  14. बहुत ही खूबसूरत एवं मौलिक प्रस्तुति !
    आज का आगरा

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  15. गजब की अभिव्यक्ति है आपकी.
    यथार्थ के कटु सत्य को उजागर करती.
    दिल को झकझोरती हुई.

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  16. बदली अपनी दुनिया जिनके खूं में बहता गर्म लहू
    हम थे क्या,क्या हुए सोच कर अब आती उबकाई है

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