· कल की वो शाम
जब हम हाथों में हाथ लेकर
बैठे थे उस शिला खंड पर
सामने झेलम नदी अपने
पूर्ण उफान के साथ उन्मादित
पत्थरों को छलान्गती
बलखाती ,गुनगुनाती बह रही थी अपने
तीव्र प्रवाह के साथ
कल्पनाओं में मानो कोई
अल्हड योवना भाग रही है
अपनी प्रीत को बांहों में जकड़ने
एतिहासिक और भोगोलिक
कथन में जा रही है पडोसी
देश पाकिस्तान में
उसे कोई सरहद कोई
सीमा रोक नहीं सकती
हम यह मनमोहक द्रश्य
निगाहों में समाते जा रहे थे
जुबान खामोश थी पर दिल की धड़कने
स्मृति पटल पर अपनी कहानी
लिख रही थी इस सलोने
वक़्त को दिल की तिजोरी में बंद
कर रही थी
मेघो ने भी अपनी
नन्ही नन्ही बूंदों से अपनी
ख़ुशी का इजहार किया
पास में जलाई हुई लकड़ियों ने
मानो मेघों से कुछ कहा
और वर्षा रुक गई
हाथो में गिलास रुत को
और मादक और तिलस्मी बना
रहे थे मानो जंगल में
खुश होकर मयूर नृत्य
कर रहे हों
ऐसे मन म्रदंग
बज रहे थे धीमे धीमे
और झेलम साथ में अपना सुर मिला रही थी
वो वक़्त तो कहने को क्षणिक था
पर हम दोनों के दिलों
में हमेशा के लिए घर बना चुका था
वो जंगल में मंगल
था या कोई दिवा स्वप्न
जहां से हम एक दूजे का हाथ थामे लौट रहे थे !
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वाह......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..............
सादर
अनु
मिलती है ज़िन्दगी मे मोहब्बत कभी कभी
जवाब देंहटाएंसुंदर दिवा स्वप्ना सी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंवाह वाह , बहुत खूबसूरत सुहाने पल .
जवाब देंहटाएंलेकिन हमारी उम्र में उफनती , बलखाती उन्मादित नदी को देखना रिस्की हो सकता है . :)
वाह! बहुत सुन्दर भावमय रचना जो अंतस को छू जाती है...
जवाब देंहटाएंवो वक़्त तो कहने को क्षणिक था
जवाब देंहटाएंपर हम दोनों के दिलों
में हमेशा के लिए घर बना चुका था
वो जंगल में मंगल
था या कोई दिवा स्वप्न
जहां से हम एक दूजे का हाथ थामे लौट रहे थे !... कितने कोमल अमिट एहसास
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (14-07-2012) के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
जवाब देंहटाएंbilkul jhelam kee tarah bah rahi hai yah rachna..sadar
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल,प्यारी, सरल अभिव्यक्ति...झेलम के प्रवाह के साथ सुर में सुर मिलाती हुई|
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर, बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंझेलम के साथ शायद मै भी बह रहा था..
जवाब देंहटाएंजब आपका ब्लॉग पढ़ रहा था....!!
अपने भाव-प्रवाह में बहा रही है सुन्दर कविता..अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी सी सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रकृति से तालमेल बिठाती मनोरम प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंसादर।
कितना कुछ है देख लिया झेलम के पानी ने..
जवाब देंहटाएंसचमुच! प्रकृति ने अपनी धरोहरों को नहीं बाँटा, फिर हँसी आती है इंसानों की ऐसी सोच पर ....जो उछलती, मचलती, अपने ही वेग में लिप्त.... मस्ती से बहे जा रही झेलम नदी को बाँटने की सोच बैठते हैं...
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सुंदर वर्णन !
सादर!
बढ़िया रचना... फॉण्ट थोडा बड़ा हो गया शब्द आपस में चिपक रहे हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावमय रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए खुबसूरत रचना:-)
जवाब देंहटाएंसुंदर भावसंयोजन
जवाब देंहटाएंहाँ, भारत की सहन है झेलम | |
हटाएंआन, मान , सम्मान है झेलम ||
झर झर झर झर मोहक स्वर में -
करती भारत गान अहि ज्गेलम!!
झेलम-संस्मरण बहाँ जाने को, अर्ताथ भारत दर्शन हेतु प्रेरित करता है |आप की यतार्थ-स्वीकारोक्ति भी सराहनीय है ||
हाँ!भारत की शान है ल्जेलम|
जवाब देंहटाएंआन, मान, सम्मान है झेलम||
झर झर -झर झर स्वर में मोहक-
करती भारत-गण है झेलम ||
इस भाव की यह रचना नदी तट के संस्मरण प्रस्तुत करने के साथ वहाँ जाने की प्रेरणा देती है | आप की यतार्थ की स्वीकारोक्ति भी सराहनीय है |