माँ के गर्भ में जब आई
तो सांस सांस सकुचाई
क्या दुनिया में आ पाऊँगी
या पहले ही मार दी जाऊँगी
सोचती हूँ क्या मैं स्वतंत्र हूँ ?
जब आँगन में तुलसी बन खिल आई
तो चहुँ ओर मुंडेर गई चिन वाई
क्या ये महक बाहर फैला पाऊँगी
या आँगन में सिमट जाऊँगी
सोचती हूँ क्या मैं स्वतंत्र हूँ?
जब चिड़िया बन इधर उधर इठलाई
रस्मी धागों से जाली बुनवाई
क्या दहलीज़ पार कर पाऊँगी
बाहर बाज़ के चंगुल से बच पाऊँगी
सोचती हूँ क्या मैं स्वतंत्र हूँ?
फिर बाबुल ने की पराई
अब दूजे पिंजरे में डलवाई
क्या कभी स्वछन्द उड़ पाऊँगी
या बचे हुए पर भी कटवाऊँगी
सोचती हूँ क्या मैं स्वतंत्र हूँ ?
जब दादी नानी बन आई
चलने को छड़ी पकड़ाई
अब तन से भी हुई पराश्रिता
क्या मन से भी हो जाऊँगी
सोचती हूँ क्या मैं स्वतंत्र हूँ?
शायद इस जन्म ना समझ पाऊँगी।
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bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना है दिल को भावनाओ से भर दिया....
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय राज जी आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर
हटाएंइस जन्म क्या न जाने कितने जन्मों तक नहीं समझ पाऊँगी ... सार्थक प्रश्न करती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमन से स्वतंत्र होना तो अपने हाथ में है..सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंप्रश्नों में ही उत्तर ढूढूँ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत से प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई सार्थक पोस्ट ........
जवाब देंहटाएंमार्मिक---
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया -
आज़ाद इस दुनिया में आयी हूँ आज़ाद ही रहूंगी
जवाब देंहटाएंhttp://mypoemsmyemotions.blogspot.in/2012/08/blog-post_1032.html
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है रचना जी |अपने आँगन धूप खिली कोई जरूरी तो नही कि हम सिर्फ़ अपनी धूप पर ही इतराये मजा तो जब है की हम उन घरों में झांक कर देखें जिनमें सूरज झांक्ता भी नही कोशिश करें कि उन तक भी धूप पहुचे आशा है रचना जी मेरे कहने का आशय आप समझ गई होंगी
हटाएं
जवाब देंहटाएंबदलाव के इस दौर में उबलते प्रश्नों का ज़वाब मांगती है यह रचना जिसमें छटपटाहट और बे -चैनी तो है विद्रोह नहीं एक रास्ता चाहिए कारा तोड़ बाहर निकलने का .मस्त गगन में उड़ने का -पंछी बनूँ उड़ती फिरूं मस्त गगन में ..........चर्चा मंच में हमारी रचना को शरीक करने के लिए आभार आपका .
bahut hi marmik chitran ham sab behnon ka
जवाब देंहटाएंसामाजिक मकड़ जाल ,उड़न डोले में झूलती परम्परा गत औरत की छवि मार्मिक ढंग से उकेरी है आपने .
जवाब देंहटाएंसामाजिक मकड़ जाल ,उड़न डोले में झूलती परम्परा गत औरत की छवि मार्मिक ढंग से उकेरी है आपने .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
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सोमवार, 11 फरवरी 2013
अतिथि कविता :सेकुलर है हिंसक मकरी -डॉ वागीश
http://veerubhai1947.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंमाननीया सुबह भी इस पोस्ट पे टिपण्णी की थी शायद स्पेम बोक्स में चली गई .शुक्रिया हमें चर्चा मंच में लाने के लिए .
जी आदरणीय आपकी सारी टिप्पणी मुक्त कर दी स्पैम बोक्स् से स्पैम बॉक्स तो आजकल डाकू हो गया है हहहा हा हा
जवाब देंहटाएंअत्यंत मार्मिक रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रश्न तो कई पर उत्तर नदारत है,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST... नवगीत,
ये दिनेश भाई बड़ा -छोटा ,अगड़ा- पिछड़ा ब्लॉग क्या होता है ?
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी पोस्ट पर बारहा प्रतिक्रिया की है आप एक भी मर्तबा राम राम भाई पे आये हों तो बतलाएं .आपकी बात तथ्यों से परे है .आपकी
वर्तनी की अशुद्धियाँ भी बारहा शुद्ध की हैं जाओ जाके देखो फिर ये राजनीति क धंधेबाजों सी बात करना .अपुन दो टूक बोलता है बिंदास .
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