(चित्र गूगल से साभार
)
ना जाने कब तुमने
ये इश्क के बीज रोपित किये
मेरे सुकोमल ह्रदय में
की मैं बांवरी हो गई
तुम्हारी चाह में ,सांस लेने लगी
उस तिलस्मी फिजाँ में
रंग बिरंगे इन्द्रधनुष आकर लेने लगे
मेरी रग रग में
ऐ मेरे शिखर तुम्हारी गगन चुम्बी चोटी
भी अब सूक्ष्म और सुलभ लगने लगी
मुहब्बत के नशे में चूर
इश्क के जूनून में जंगली
घास बन ,फूलों के संग संग तुम्हारे
बदन पर रेंगती हुई
पंहुच गई तुम्हारे शीर्ष तक
और आलिंगन बद्ध कर लिया तुम्हे
तुमने एक बार भी नहीं पूछा
की मेरा मजहब क्या है
जैसे की तुम सब पहले से ही जानते थे
हर युग में हर राह में
हर रूप में तुम मुझे मिलते रहे
वो तुम ही थे जब
निर्विरोध ,निःस्वार्थ ,द्रुत गति
से बहती हुई ,रास्ते में नुकीले
पत्थरों कंटीली झाड़ियों से
जख्मी होती हुई तुम्हारी गोद में समा गई मैं
और ख़ुशी ख़ुशी विलीन हो गई
ये मेरे इश्क की इन्तहा ही तो थी
तुमने कब पूछा मेरा मजहब
उस वक़्त भी नहीं जब मैं
सारी रात कतरा कतरा जली
तुम्हारी चाहत में और तुम मेरे
पहलु में जान दे बैठे और
तुम्हारी मौत का इल्जाम मेरे सर लगा
अब तक इश्क का वो अंकुर
सघन दरख़्त बन चुका था
वो वक़्त हम कैसे भूल सकते हैं
जब मैं तुम्हारे ही प्यार में बावरी
हो बन बन में जोगन बन कर भटकती थी
वो भी तो मेरा जूनून ही था
तुम्हे पाने के लिए गरल भी पिया
पर तुम सब जानते थे
आज भी जानते हो की
इश्क ही मेरा मजहब है
सब खेल तुमने ही तो रचाया है
तुमने ही तो इश्क का बीज
इस माटी के बुत में अंकुरित किया
सदियों से हम यूँ ही रूप बदल बदल कर
इस दुनिया में इश्क और मुहब्बत
की खुशबू फैलाते चले आ रहे हैं
ताकि ये दुनिया प्यार की नीव पर टिकी रहे
द्वेष और वैमनस्य से बहुत दूर
एक खूब सूरत दुनिया
जो किसी मजहब ,
रंग रूप की मोहताज ना हो
पर आज क्यूँ तुमने
उस इश्क के फूल को
केक्टस बनने को मजबूर कर दिया
देखो ना कितने काँटे
उग आये हैं मेरे बदन में
तुमने इक बार भी नहीं सोचा
,इस माटी में अब केक्टस ही तो उगेंगे !!!
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बहुत सुंदर शानदार अभिव्यक्ति ,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST शहीदों की याद में,
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
Bahut Badhiya Rachna.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभियक्ति
जवाब देंहटाएंसादर !
देखो ना कितने काँटे
जवाब देंहटाएंउग आये हैं मेरे बदन में ...
दर्द की बढ़िया अभिव्यक्ति ...
बहुत सुन्दर भाव संयोजन। अब वाकई वो जमीन और जज्बात खोजने पर ही मिलते हैं जो कैक्टस न बन जाते हों
जवाब देंहटाएंसदियों से हम यूँ ही रूप बदल बदल कर
जवाब देंहटाएंइस दुनिया में इश्क और मुहब्बत
की खुशबू फैलाते चले आ रहे हैं
ताकि ये दुनिया प्यार की नीव पर टिकी रहे
द्वेष और वैमनस्य से बहुत दूर
एक खूब सूरत दुनिया
सुंदर मार्मिक रचना..
सुन्दर भावाभियक्ति..
जवाब देंहटाएंतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है राजेश कुमारी जी - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
जवाब देंहटाएंरुक्ष हृदय, अब क्या अभिलाषित?
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जवाब देंहटाएंअनुभूति की सशक्त अभिव्यक्ति
New post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
जवाब देंहटाएंसही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति... शुभकामनाएँ.
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