तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो श्रंगार रस में डुबोकर तूलिका
,से मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख्
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत! व्यथित है चित्रकारी
**********************
शेर
उड़ाता
रहा धुएँ
के
छल्लों
कि
तरह,
आए
जब
बुलावे
उसके
शहर
से
मुड़े
आज
पाँव
जो
उसकी
जानिब, मिला हुक्म उसका चला
जा
शहर
से
*********************************************
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया राजेश जी...
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख्
तूलिका का रंग बदला
बहुत सुन्दर..
अनु
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंNew post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
रंग करे जीवन्त,
जवाब देंहटाएंचुलबुली हँसी कहाँ है?
शब्दों में चाहा,
सुनयने बसी कहाँ है?
वाह !!! बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,,,राजेश जी,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST बदनसीबी,
बहुत बढ़िया भाव हैं-
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें आदरेया -||
कारीगरी अजीब है, तोला-मासा होय |
इंद्र-धनुष से रंग सब, आये जाय विलोय |
आये जाय विलोय, कूचिका बनी बिचारी |
देख विभिन्न विचार, डुबोये बारी बारी |
सात रंग से श्वेत, हुई पर काली सारी |
हाय हाय रे हाय, गजब रविकर चित-कारी ||
आपके लिखने का अंदाज़ बहुत ही उम्दा और अलग है.. !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..........
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..शब्द व भावों का अनोखा मेल..
जवाब देंहटाएंजिसके अंग अंग पर तूलिका चलती थी
जवाब देंहटाएंतू नहीं रही अब वो नारी...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
Bahut khoob,,, Behtreen
जवाब देंहटाएंshabd aur bhavo ka sundar sanyojan ...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
सादर आभार सुरेश अग्रवाल जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita Rajesh ji...
जवाब देंहटाएंसब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जवाब देंहटाएंजिसके अंग अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत! व्यथित है चित्रकारी
लाजवाब रचना ओर लाजवाब शेर ... मज़ा आया ...
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
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