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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

हंत! व्यथित है चित्रकारी (क्षणिका)


तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी

तो श्रंगार रस में डुबोकर तूलिका

,से मन में कोई छवि बना ली 
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला 
आंखों में सुर्ख डोरों को देख्
तूलिका का रंग बदला 
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी 
जिसके अंग अंग पर तूलिका चलती थी 
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन 
हंत! व्यथित है चित्रकारी 

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शेर 
उड़ाता रहा  धुएँ के छल्लों कि तरह, आए जब बुलावे उसके शहर से
मुड़े आज पाँव जो उसकी जानिब, मिला हुक्म उसका चला जा शहर से 

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15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...
    बहुत बढ़िया राजेश जी...
    कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
    भाव बदला, रस बदला
    आंखों में सुर्ख डोरों को देख्
    तूलिका का रंग बदला
    बहुत सुन्दर..

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. रंग करे जीवन्त,
    चुलबुली हँसी कहाँ है?
    शब्दों में चाहा,
    सुनयने बसी कहाँ है?

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  3. वाह !!! बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,,,राजेश जी,,,,

    RECENT POST बदनसीबी,

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया भाव हैं-
    बधाई स्वीकारें आदरेया -||

    कारीगरी अजीब है, तोला-मासा होय |
    इंद्र-धनुष से रंग सब, आये जाय विलोय |
    आये जाय विलोय, कूचिका बनी बिचारी |
    देख विभिन्न विचार, डुबोये बारी बारी |
    सात रंग से श्वेत, हुई पर काली सारी |
    हाय हाय रे हाय, गजब रविकर चित-कारी ||

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  5. आपके लिखने का अंदाज़ बहुत ही उम्दा और अलग है.. !

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  6. बहुत सुंदर..शब्द व भावों का अनोखा मेल..

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  7. जिसके अंग अंग पर तूलिका चलती थी
    तू नहीं रही अब वो नारी...बहुत सुंदर अभि‍व्‍यक्‍ति

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  8. Bahut khoob,,, Behtreen
    shabd aur bhavo ka sundar sanyojan ...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html

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  9. सादर आभार सुरेश अग्रवाल जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

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  10. सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
    जिसके अंग अंग पर तूलिका चलती थी
    तू नहीं रही अब वो नारी
    नही बचा तुझमें स्पंदन
    हंत! व्यथित है चित्रकारी

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  11. लाजवाब रचना ओर लाजवाब शेर ... मज़ा आया ...

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