बही पीर दिलसे पिघलते- पिघलते
रुकी जब फ़लक से नमी ढलते ढलते
दिखे वो जरा रुख बदलते- बदलते
जमी थी किनारों पे लालच की काई
बचे हम जरा सा फिसलते फिसलते
हमारे बिखरने की चिंता न करना
बहल जाएगा दिल बहलते बहलते
जला ले न खुद को खुदी की अगन से
कहा हिम ने रवि से पिघलते पिघलते
सुना जब हवाएं करेंगी बगावत
रुके हम वहां से निकलते निकलते
कहा गुल ने बुलबुल से पलकें बिछा कर
चली आ फिजाँ में टहलते टहलते
जरा तू मुझे पाँव से आके छू ले
कहा इक लहर ने मचलते मचलते
गुनाहों के दल दल से ऐ 'राज' बचना
बढ़ाना कदम ये संभलते संभलते
*********************************************
राजेश कुमारी "राज"
जवाब देंहटाएंगुनाहों के दल दल से ऐ 'राज' बचना
बढ़ाना कदम ये संभलते संभलते
क्या बात है ... हर शेर जबरदस्त
बधाई इस उम्दा प्रस्तुति के लिये
Bahut umda Rachna ... badhai...
जवाब देंहटाएंbehad umda prastuti..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... लाजवाब गज़ल ओर उसके सभी शेर ...
जवाब देंहटाएंदोनों ही गजलें बेहद उम्दा..प्रस्तुतीकरण अनुपम है..
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुतीकरण के साथ..
जवाब देंहटाएंअप्रतिम गजल....
बहुत ही बेहतरीन...
:-)
वाह वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया राजेश जी...
सुन्दर गज़लें...
सादर
अनु
दोनों ही गजलें लाजवाब
जवाब देंहटाएंLatest postअनुभूति : चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )
बहुत ही सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सभी शेर एक से बढ़कर एक बेहद लाजबाब अभिव्यक्ति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
दोनों ही गज़लें बेहतरीन .......
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना,बधाई स्वीकरें
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : ''......यह तो मौसम का जादू है मितवा......''
गुनाहों के दल दल से ऐ 'राज' बचना
जवाब देंहटाएंबढ़ाना कदम ये संभलते संभलते
आदरणीया सादर अभिवादन स्वीकार करे ,प्रत्येक पंक्ति में गजब की भावाभिव्यक्ति ,अंतिम पंक्ति में जानदार अनुभव का शानदार चित्रण ,दोनों गजल लाजबाब बहुत बहुत शुभ कामनाये
दोनों ही गजलों में शानदार भाव और शब्द संयोजन है। वधाई !
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी ग़ज़ल ..
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति दिल छूती है ..
शुभकामनायें आपको !