(कुछ दोहे)
प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |
प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?
सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |
निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||
पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |
अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||
युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |
खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||
पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |
प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है ऋतुराज||
लगा डुबकियाँ कुंभ में ,तन का मैल उतार |
कहाँ उतारे सोच ले ,मन का शेष विकार||
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kya baat hai DIDI aapne bilkul sahi kaha western culture ka bolbala hai basant ka kisi ko dhyaan hi nahi,nice write up
जवाब देंहटाएंbahut sahi likha hai! People are westernized now. They hardly bother about their own culture and festivals.
जवाब देंहटाएं" दूर का ढोल सुहावना लगता है " कहावत पुरानी है परन्तु नव युवक, युवती के लिए पश्चिम का आकर्षण जरुरत से ज्यादा हो गया है
जवाब देंहटाएंLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
खुबसूरत.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया उम्दा दोहे ,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बसंती रंग छा गया
खूबसूरत मन के दोहे , बहुत ही अच्छे बधाई
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बधाई .
जवाब देंहटाएंसंदेशप्रद दोहे, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-02-2013) के चर्चा मंच-1157 (बिना किसी को ख़बर किये) पर भी होगी!
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कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!
शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआदरेया ।।
बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे।
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंपश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |
जवाब देंहटाएंअपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद ...
सार्थक ... सटीक लिखा है ... सोचने की बात है ...