सभ्यता और संस्कृति जब तक|
लौ जीवन की जलती तब तक ||
पत्थर
में
हीरा
पह्चानो|
सद्
गुण
रुप
सकल
तुम
जानो
||
जल बिन
कमल
चाँद
बिन
अंबर
गुण
बिन
वदन
मान
मत
सुंदर
||
आदर्शों
से
चलती
नैया|
मिट
जाएँ
तो
कौन
खिवैया
||
सम सुसंस्कृत देश है मेरा|
उस पे
अखंडता
का बसेरा
||
सभ्यता
पहचान
हो जिसकी|
सुसंस्कृति
ही
जान
है
उसकी||
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अत्यंत सुदर ...सुघड़ और सार्थक लेखन ...!!
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें राजेश जी ....!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी , आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
सभ्यता पहचान हो जिसकी|
जवाब देंहटाएंसुसंस्कृति ही जान है उसकी||
बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
recent post: बसंती रंग छा गया
गागर में सागर..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आदरेया ।।
जवाब देंहटाएंसभी चौपाइयाँ सन्देशपरक हैं!
जवाब देंहटाएंसभ्यता पहचान हो जिसकी|
जवाब देंहटाएंसुसंस्कृति ही जान है उसकी||
बहुत सुंदर क्या बात हैं ........
अद्भुत रचना ...
जवाब देंहटाएंDidi namaskar,bahut hi sunder chaupaiyan....
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : !!..'बचपन सुरक्षा' एवं 'नारी उत्थान' ..!!
सन्देशपरक ,सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatestpost पिंजड़े की पंछी
यह तो हमें बचाकर रखना ही होगा, वही हमारे बीज हैं।
जवाब देंहटाएंसंदेशप्रद रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेश, बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति ...
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