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गुरुवार, 19 मई 2011

सिंकिंग कान्फिडेंस , आप बीती

 आज मैं अपनी एक हकीकत को या कहिये एक बेवकूफी को पहली बार हास्य रस का पुट देते हुए कविता के माध्यम से आप लोगो से शेयर कर रही हूँ !प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा !

                                वाटर का ऐसा फोबिया  क़ि समुद्र के शांत किनारे 
                                चुल्लू भर पानी में बैठ कर तन मन इस तरह घबराते  
                               क़ि दूसरे मजे लूटने वालों के बच्चे लेकर 
                               बैठने के आफ़र आते!

                               फिर जब उम्र हुई पचास और बन गई नानी 
                               तैराकी विद्या सीखने क़ी मन में ठानी 
                              पति ने भी उत्साही किया ,सोचा  अगर सीख जायेगी 
                              कभी डूबने लगी तो खुद ही बच तो जायेगी !
                              
                              कुछ जल्दी ही फ्री स्टाइल सीख लिया 
                             सोचा चलो किला फतह किया 
                            सीखते हुए जुम्मा जुम्मा हुए थे चार दिन 
                            अपने को समझने लगी स्विम्मिंग कुवीन!

                            छोड़ चार जा पहुंची आठ फीट क़ी गहराई  में 
                            सोचा अब तो सब आता है 
                            कुछ फर्क नहीं गहराई में !

                           फिर अचानक मन में आया ,ओवर कांफिडेंस ने सिर उठाया 
                           फ्री स्टाइल छोड़ बैकफ्लोट करने लगी 
                           खुश इतनी जैसे ऊँचे गगन में उड़ने लगी !

                        वापस आते  हुए जब सात फीट तक पंहुच गई 
                        लगा जैसे नाव भंवर में अटक गई 
                        बालेंस बाडी का ऐसे बिगड़ गया 
                        मानो अचानक कोई कारगो शिप उलट गया !

                       आकार धीरे धीरे  वर्टिकल हुआ
                      और फाईनली एंगल नाइंटी डिग्री हुआ 
                      जैसे ही पाँव ने पूल के  धरातल  को छुआ 
                     सारा कांफिडेंस पल में  उड़नछू हुआ !

                    मोत को रूबरू देख हिम्मत दम तोड़ने लगी 
                   धड़कने बेलगाम घोड़े क़ी तरह दोड़ने लगी  
                    अपनों क़ी पिक्चर मन के थियेटर में दोड़ने लगी!

                   दो तीन बार बाडी सतह पर आई 
                  चारो तरफ नजर दोड़ाई
                  लाइफ गार्ड भी मस्त था 
                 मेरी तरफ से आश्वस्त था !
                 
                फिर एक बात जहन में आई 
                सिखाने वालों क़ी क्यूँ नाक कटाई 
                मैं क्यूँ डूब रही हूँ
                थोडा बहुत तो मुझे आता है 
                ये क्यूँ भूल रही हूँ !

              वाटर फोबिया को जीतना है ध्यान में आया 
              खोया कांफिडेंस वापस आया !
             फिर हुई जोश में पानी से हाथापाई 
             फ्री स्टाइल में ही वापस आई 
            जान बची और लाखो पाई 
           चलो किसी ने नहीं देखा 
          बाहर निकल कर खैर मनाई !

          फिर भी मैंने हार न मानी 
          पानी को पूर्णतः फतह करने क़ी ठानी 
       अब मैं खुद गोते लगाती हूँ 
      धरातल को पैर से नहीं 
     हाथो से छू कर आती हूँ !!

अब कांफिडेंस तो है पर ओवर कांफिडेंस तौबा तौबा !!! 
  
                      
                             
                                                  

16 टिप्‍पणियां:

  1. अब कांफिडेंस तो है पर ओवर कांफिडेंस तौबा तौबा !!!
    अब न किसी की नाक कटेगी और डूबने का खतरा भी नहीं .... आराम से जलपरी बनकर तैरिये

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  2. अब कांफिडेंस तो है पर ओवर कांफिडेंस तौबा तौबा !!!


    यह ओवर कांफिडेंस ही सारा कांफिडेंस खतम कर देता है ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..

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  3. हा हा हा……………आपने तो गज़ब की आपबीती सुना दी……………सारे कांफ़िडेंस की वाट लगा दी।

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  4. ओवर तो फिर ओवर ही हुआ न हा हा हा.......

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  5. कॉंफिडेंस का ही एक भाग है ओवर कांफिडेंस!

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  6. सबसे पहले तो रचना को हास्य का रूप देने के लिए धन्यवाद प्रयोग सफल रहा दूसरी बात जन कांफिडेंस होगा तभी ओवर कांफिडेंस आयेगा |

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  7. बहुत बढ़िया संस्मरण । आखिर आपने तो स्विमिंग सीख ही ली । हम तो आज तक नहीं सीख पाए ।

    ब्लॉग के बैकग्राउंड का रंग काला होने से पढने में दिक्कत हो रही है । कृपया बदल कर देखें ।

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  8. कुछ सुना कीजिये ,कुछ कहा कीजिये ,
    मौन इतना कभी मत ,रहा कीजिये .बेहतरीन भाव और अंदाज़े बयाँ!
    यहाँ तो हाल ये है -
    गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
    कुछ हमसे कहा होता कुछ हमसे सुना होता .

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  9. "धरातल को पैर से नहीं हाथ से छू कर आतीं हूँ ."
    हाथ -पैरों से नहीं हौसले से नहातीं हूँ . जी हाँ मदाम(मेडम )जंग हथियारों से नहीं हौसले से जीती जाती है ज़िन्दगी की हो चाहे पानी की ।
    अच्छी मानसिक धुंध ,मानसिक कुहाँसा उकेरा है कविता में .बधाई .

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  10. आपने तो गजब की कविता सुना दी
    हिंदी अंग्रेजी का क्या खूब संगम है अब तो आत्मविश्वास आ ही गया होगा

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  11. आपकी हास्य-रचना पढ़ कर बड़ा आनन्द आया। इसे पढ़ कर मुझे अपने काव्य-संकलन "बड़े वही इंसान" की कुछ पंक्तियाँ स्मरण हो आयीं। वह आपसे साझा कर रहा हूँ।
    +++++++++++++++++++++++++
    "भूतकाल तो गया निकल,
    चाह यदि भविष्य हो सफल,तो न और सोचिए विचारिए।
    वर्तमान को अभी सवाँरिए! वर्तमान को अभी सवाँरिए!!
    कर्महीन लक्ष्य को न पा सकें,
    दीनता कभी न वो मिटा सकें,
    इंतिजार है जिन्हें नदी रुके,
    व्यक्ति वो कभी न पार जा सकें.
    तैरना तुम्हें अवश्य आएगा, नीर में शरीर तो उतारिए॥
    वर्तमान को अभी सवाँरिए! वर्तमान को अभी सवाँरिए!!"
    ====================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  12. अब तो आत्मविश्वास आ ही गया होगा|जलपरी बनकर आराम से तैरिये|

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  13. आपकी आप बीती पढ़कर तो मेरी सांस ही रुक गयी थी । लेकिन आपका आत्म विश्वास बहुत ही प्रेरणादायी है। मेरा तो तैराकी में zero confidence है।

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  14. कविता में बहुत बढ़िया संस्मरण..बधाई

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  15. jab aap doobti hain to log tairte hain. aur jab aap tairti hain, to log doob jate hain aapki kavita main. zinda-dili ki jaanbaaz rachna. shilp par thoda aur kaam karen.

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