जब भी मैं दहेज़ प्रताड़ित लड़की की व्यथा सुनती हूँ तो मन विचलित हो उठता है !और लड़की पराया धन जैसी कहावत सुनकर तो विद्रोह पर उतारू हो जाता है !मेरी ऐसी ही मनो स्तिथि थी जब यह कविता लिखी !
अन्तः उर में छाई उदासी
हार सिंगार क्यूं हो गया बासी
सुर्ख परिधान लगे स्याह सरीखा
मेहंदी का रंग पड़ गया फीखा !
तात मैं तेरी सोन चिरैया
पल पल तरसूँ तेरी छैया
जिस कर में कन्या दान दिया
जीवन भर का सम्मान दिया
उसने ही सात वचनों का मखौल किया
धन के तराजू में तोल दिया
क्षण भर में सब स्वप्न डुबोए
अश्रुओं से नयन भिगोए !
तेरी लाडली भूखी सोती
याद आये तेरी सूखी रोटी
झूठे बंधन झूठी कसमें
विवाह के नाम पर
खोखली रस्में !
तात कठिन है ये सब सहना
बेटी पराया धन होती है,
तुझे मेरी कसम अब ये मत कहना
अब ये मत कहना !!
तात कठिन है ये सब सहना
जवाब देंहटाएंबेटी पराया धन होती है,
तुझे मेरी कसम अब ये मत कहना
अब ये मत कहना !!
दहेज प्रताडना जैसे गंभीर विषय पर कविता के माध्यम से ध्यान खीचने की कोशिश सराहनीय. इसकी सिर्फ आलोचना से कुछ होने वाला नहीं. बहुत उम्दा विचारणीय पोस्ट.
मार्मिक रचना ....बेटियों को पराया धन न समझने के प्रति जागरूक करती रचना
जवाब देंहटाएंतात कठिन है ये सब सहना
जवाब देंहटाएंबेटी पराया धन होती है,
तुझे मेरी कसम अब ये मत कहना
अब ये मत कहना !!
बहुत भावपूर्ण और सार्थक बात कही आपने.
लज्जा आती है अपनी सोच और कुरीतियों पर.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमर्म को स्पर्श करने वाली जीवन्त कविता के लिए...बधाई! आपकी चिंता स्वाभाविक है। इस समस्या का मूल कारण अशिक्षा है। भारत में सदियों तक शिक्षा के दरवाजे आम आदमी के खुले न थे। अत: "मैं जो चाहूँ सो करूँ....मेरी मर्ज़ी" वाला सिद्धांत यहाँ प्रभावी रहा। यह सिद्धांत ताकत का परिचायक है। आप इसे जंगलराज वाला सिद्धांत कह सकते हैं। ऋषियों ने इस सिद्धांत की व्याख्या "वीर भोग्या वसुंधरा" रूप में की है। वीरों ने पुरूषों को दास और स्त्रियों को दासी समझा। दास और दासियाँ उनके लिए भोग की वस्तु थे, धन थे। पर्दा-प्रथा, सती-प्रथा, बाल-विवाह, देवदासी-प्रथा जैसी अनेक प्रथाओं में उसे जकड़ा गया। आम जनता ने उनकी बातों को अपना आदर्श समझ कर अपना लिया। यह उसी मानसिकता के लक्षण हैं-’कन्या को कन्या नहीं दान की वस्तु समझा जाता है। जिस बच्ची को वे जन्म देते हैं वे उसे पराया धन मानने लगते हैं। अत्याचार, अत्याचार है। दलितों और पिछड़ों की भाँति समाज के कमजोर वर्ग में नारियाँ भी आती हैं। जब दास और दासी भारी संख्या में प्रताणित किए जाते हैं, जलाए जाते हैं तो उसे दंगा कहा जाता है। जब केवल दासी (नारी) प्रताणित की जाती है, जलाई जाती है तो उसे दहेज-हत्या कह दिया जाता है। दहेज-हत्या शोषण का घिनौना रूप है। आज भी बर्बर युग की बहुत गहरी जड़ें हमारे समाज में विद्यमान हैं। जिस देश का समाज जितना सभ्य होगा उस देश में लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली उतनी ही कामियाब होगी। लोकतंत्र में स्त्री और पुरुष के बीच लिंग के आधार पर भेदभाव का कोई स्थान नहीं होता है।
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
तात मैं तेरी सोन चिरैया
जवाब देंहटाएंपल पल तरसूँ तेरी छैया
जिस कर में कन्या दान दिया
जीवन भर का सम्मान दिया
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बहुत सुन्दर रचना!
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उम्र चाहे कितनी भी हो जाए,
मगर माता पिता का प्यार और दुलार तो
हमेशा ही याद आता है!
तेरी लाडली भूखी सोती
जवाब देंहटाएंयाद आये तेरी सूखी रोटी
झूठे बंधन झूठी कसमें
विवाह के नाम पर
खोखली रस्में !
in rasmon me laldi to ghut ghut jati n
तात कठिन है ये सब सहना
जवाब देंहटाएंबेटी पराया धन होती है,
तुझे मेरी कसम अब ये मत कहना
अब ये मत कहना !!
सच कहा ये नही कहना चाहिये और पुरानी परिपाटियों को बदलना चाहिये। बेह्द मार्मिक चित्रण
rona aa gaya ..
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंबेटी से बहू बनते ही लड़की की दुनिया बदल जाती है।
बेटी के दुख को आपने एक अच्छी कविता का रूप दिया है।
कुछ रचनाएं मन में जगह बना लेती हैं, ये रचना उनमें से एक है।
जवाब देंहटाएंउसने ही सात वचनों का मखौल किया
जवाब देंहटाएंधन के तराजू में तोल दिया
क्षण भर में सब स्वप्न डुबोए
अश्रुओं से नयन भिगोए !
तेरी लाडली भूखी सोती
याद आये तेरी सूखी रोटी
झूठे बंधन झूठी कसमें
विवाह के नाम पर
खोखली रस्में !
तात कठिन है ये सब सहना
बेटी पराया धन होती है,
तुझे मेरी कसम अब ये मत कहना
अब ये मत कहना !!
आदरणीय राजेश कुमारी जी नमस्ते!
मर्म को स्पर्श करने वाली गम्भीर वैचारिक सोच से उद्भूत एक सुंदर जीवन्त मार्मिक कविता के लिए...बधाई!
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
नादान हैं वे जो अपने ही धन को 'पराया धन' कहते हैं । लेकिन अफसोसजनक तो ये है की जब तक ये सोच रहेगी , तब तक स्त्रियों को समुचित सम्मान नहीं मिल सकेगा। वो अपनी पहचान और सही स्थान के लिए भटकती ही रहेंगी।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना ।
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